बंगाल में विधानसभा का एलान हो चुका है। तृणमूल ने सभी 294 सीटों पर प्रत्याशी उतारने के साथ चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है। परंतु, विरोधी पार्टियां अब तक उम्मीदवारों की घोषणा में पीछे हैं। वाममोर्चा ने जहां अब तक 116 उम्मीदवारों की सूची जारी की है तो कांग्र्रेस ने 75 सीटों की तालिका सार्वजनिक कर बताने की कोशिश की है कि उनके उम्मीदवार इन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। भाजपा ने भी कुछ उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की है। इस चुनाव का सबसे अहम बिंदु वाममोर्चा व कांग्र्रेस गठबंधन को माना जा रहा है। परंतु, वाममोर्चा व कांग्र्रेस के नेता कह रहे हैं कि सीटों का समझौता हुआ है गठबंधन नहीं। हालांकि, समझौते के साथ-साथ कुछ सीटों पर कांग्र्रेस व वाममोर्चा के भी प्रत्याशी भाग्य आजमाएंगे। जिसका नाम दोस्ताना लड़ाई दिया गया है। पर, यहां सवाल यह है कि चुनावी मैदान में वाममोर्चा, कांग्र्रेस, तृणमूल, भाजपा सभी प्रत्याशी जीत के लिए उतरेंगे। जीत किसी एक को ही मिलेगी। पर, इसे दोस्ताना लड़ाई की संज्ञा देना क्या उचित है? क्योंकि, चुनावी मैदान में लड़ाई होती ही है। परंतु, ऐसा क्यों हो रहा है? तृणमूल को हराने के लिए दो भिन्न विचारधारा वाली पार्टियां कांग्र्रेस व वाममोर्चा के हाथ मिलाने का उद्देश्य विपक्षी वोट का बंटवारा रोकना है। वाममोर्चा व कांग्र्रेस नेताओं को पता है कि तृणमूल विरोधी वोट यदि लामबंद हो कर किसी एक उम्मीदवार को नहीं गया तो स्थितियां अनुकूल नहीं हो सकती। फिर सीटों का तालमेल और समझौते का क्या अर्थ निकाला जाए? क्योंकि, यदि एक भी सीट पर कांग्र्रेस व वाममोर्चा दोनों के प्रत्याशी आमने-सामने हुए तो इसका असर अन्य सीटों पर भी पडऩा लाजिमी है। ऐसी स्थिति में वाममोर्चा व कांग्र्रेस नेता क्या करेंगे? वहीं दूसरी ओर कांग्र्रेस व वाममोर्चा के बीच सीटों के तालमेल होने के बावजूद चुनाव प्रचार में एक मंच पर दोनों ही दलों के नेता नहीं दिखेंगे। यानी सीताराम येचुरी यदि प्रचार कर रहे होंगे तो राहुल गांधी या सोनिया गांधी उनके मंच पर नहीं होंगे। और कांग्र्रेस हाईकमान जब प्रचार कर रहे होंगे तो कामरेड वहां नहीं दिखेंगे। ऐसी स्थिति में धर्मनिरपेक्ष दलों को लामबंद करने का दावा जो माकपा नेता कर रहे हैं उसकी हवा निकल जाएगी। बिहार में भाजपा के खिलाफ लगभग पूरा विपक्ष एकजुट होकर महागठबंधन तैयार किया था। उसी का नतीजा रहा कि नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बने। पर, बंगाल में स्थिति विपरीत दिख रही है। इन परेशानियों से कांग्र्रेस व कामरेड कैसे निपटेंगे यह देखने वाली बात होगी। क्योंकि, अब वक्त नहीं है। 11 मार्च को प्रथम चरण के लिए अधिसूचना जारी हो जाएगी और नामांकन शुरू हो जाएगा। दूसरा स्थिति स्पष्ट नहीं होने से मतदाता भी कंफ्यूज रहेंगे। इसीलिए वाममोर्चा व कांग्र्रेस को ऐसा रास्ता जल्द से जल्द निकालना होगा कि सब सुव्यवस्थित रहे।

[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]