बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने सरकारी, निजी या फिर किसी भी बोर्ड से संबद्ध स्कूल हो, उसमें अब कक्षा एक से लेकर 10 तक बांग्ला भाषा पढऩा छात्र व छात्राओं के लिए अनिवार्य करने की घोषणा की है। सोमवार की रात शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने अपने आवास पर संवाददाता सम्मेलन कर घोषणा कर दी कि सभी स्कूलों में बांग्ला भाषा बच्चों को पढऩा अनिवार्य होगा। अचानक हुई इस घोषणा के बाद से राज्यभर में चर्चा जोर पकडऩे लगी है कि आखिर सरकार ने ऐसा निर्णय अचानक क्यों लिया? इसके पीछे का तर्क यह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्थानीय भाषा व संस्कृति को अलग मर्यादा देती आ रही हैं। वह अंग्र्रेजी के साथ-साथ मातृभाषा में पठन-पाठन को अधिक महत्व देती हैं। यही नहीं कहीं भी बांग्ला और बंगाली के साथ अन्याय होता है तो वह मुखर होती रही हैं। अभी पिछले सप्ताह ही नीट परीक्षा में बांग्ला भाषा में कठिन प्रश्न पूछे जाने को लेकर भी बंगाल सरकार ने आपत्ति जताई है। इस घटना के एक सप्ताह के भीतर ही शिक्षा मंत्री द्वारा बांग्ला भाषा को अनिवार्य किए जाने की घोषणा के सियासी निहितार्थ भी निकाले जा रहे हैं। यहां ङ्क्षहदी बनाम बांग्ला की बात, इस निर्देश में कहीं छुपी तो नहीं है? ऐसे भी सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि, निजी स्कूलों खासकर सीबीएसई और आइसीएसई बोर्ड से संबंद्ध स्कूलों में अब तक बांग्ला भाषा ऐच्छिक विषय के रूप में बच्चों को बढ़ाया जाता था। अंग्र्रेजी को अनिवार्य था। हालांकि, शिक्षा मंत्री ने ङ्क्षहदी बनाम बांग्ला के विवाद के आसार को सिरे से खारिज कर दिया है। उनका तर्क है कि अब तक छात्र-छात्राओं को ङ्क्षहदी और अंग्रेजी या गुरमुखी व उर्दू या फिर नेपाली व अल्चिकी को प्रथम भाषा के रूप में किन्हीं दो को चुनने का अधिकार था। अब उन्हें एक बांग्ला भाषा को अनिवार्य के रूप से चुनना होगा। ऐसे में किसी अन्य भाषा के साथ टकराव का सवाल ही पैदा नहीं होता। परंतु, यहां प्रश्न यह उठ रहा है कि अंग्र्रेजी, ङ्क्षहदी, बांग्ला, उर्दू, नेपाली, अल्चिकी और गुरमुखी, इन सात भाषाओं में से किन्हीं दो को अनिवार्य रूप में बच्चों को चुनना पड़ता था। परंतु, राज्य सरकार के इस नए नियम के लागू होने से पहले जो गैर बंगाली बच्चे ङ्क्षहदी और अंग्रेजी या फिर उर्दू या गुरमुखी को चुनते थे, उन्हें अब बांग्ला अनिवार्य रूप से चुनना होगा? ऐसे में बच्चों के लिए यह अतिरिक्त भाषा थोपने जैसा होगा या नहीं? सरकार को इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है।
---------------------
(हाईलाइटर::: निजी स्कूलों खासकर सीबीएसई और आइसीएसई बोर्ड से संबंद्ध स्कूलों में अब तक बांग्ला भाषा ऐच्छिक विषय के रूप में बच्चों को पढ़ाया जाता था।)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]