फ्लैश कई अन्य उदाहरण भी हैं कि प्रदेश में आम आरोपियों के लिए कानून अलग हैं और खास लोगों के लिए उसकी व्याख्या अलग ढंग से की जाती है।---दुष्कर्म आरोपी निवर्तमान मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति की नाटकीय गिरफ्तारी जरूर हुई है लेकिन इस मामले ने सत्ता की हनक के आगे पुलिस का बौनापन फिर उजागर किया है। यह सवाल सहज ही उठा है कि क्या किसी आम आरोपी के मामले में भी पुलिस का रवैया इतना ही उदार होता। पुलिस इसे अपनी सफलता के रूप में भले ही प्रचारित करे लेकिन यह भी सच है कि गायत्री ने पूरा स्टेज सजाकर अपनी मनमर्जी के अनुसार खुद को गिरफ्तार कराया। थाने में आवभगत, सीओ के कमरे में कपड़े बदलने की सुविधा, पसंद का खाना, महंगी-बड़ी गाड़ी से अदालत तक जाना और पीछे लग्जरी कारों का काफिला सिस्टम और कानून व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते नजर आए। दबंग समर्थकों के आगे पुलिस असहाय नजर आई। उनकी गिरफ्तारी के बाद सत्ता का वह चेहरा देखने को मिला जिसे आम तौर पर राजनीतिक दल छिपाने की कोशिश करते हैं। लेकिन, गायत्री के प्रकरण में शायद ही किसी को इसकी परवाह रही हो। यही वजह है कि चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री के लिए बनाए गए मंच पर अपना चेहरा दिखाने के बाद भी वह बचे रहे। विपक्षी दलों ने इसे लेकर सीधा हमला बोला, तब भी उनकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी। यहां तक कि पीडि़ता का बयान लेने गई एक महिला अधिकारी ने उसे धमकाने की कोशिश भी कर डाली।वैसे यह पहला अवसर नहीं था जब सरकार के इशारे पर गंभीर धाराओं के रसूखदार आरोपियों की गिरफ्तारी से पुलिस बचती नजर आयी। इससे पहले कवियित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के आरोपी अमरमणि त्रिपाठी, बांदा में दुष्कर्म के आरोपी बसपा विधायक पुरुषोत्तम द्विवेदी आदि के मामलों में भी ऐसा ही देखने को मिल चुका है। कई अन्य उदाहरण भी हैं कि प्रदेश में आम आरोपियों के लिए कानून अलग हैं और खास लोगों के लिए उसकी व्याख्या अलग ढंग से की जाती है। गायत्री प्रजापति के मामले की सरकार और पुलिस ने जिस तरह अनदेखी की, वह सत्ता की शह पाए रसूखदारों को अराजक बनाती है। अदालत जाते समय गायत्री समर्थकों का मीडिया और पुलिस पर हमला एक बानगी है। एक सवाल यह भी उठा है कि आखिर ऐसे कौन से कारण होते हैं जिसमें खनन घोटाले की वजह से आंख की किरकिरी बनने वाला एक मंत्री कुछ ही महीनों में सरकार की आंखों का तारा हो जाता है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]