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भाईचारे के साथ त्योहार मनाने के लिए एक-दूसरे की भावनाओं को समझते हुए सौहार्द का परिचय देना होगा। पुलिस और प्रशासन को भी अलर्ट रहना होगा।
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रामनवमी अखाड़ा जुलूस झारखंड की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। शहरों से लेकर दूर दराज के कस्बानुमा इलाकों तक में इसे लेकर देखा जानेवाला भारी उत्साह इसकी महत्ता व लोक भागीदारी को रेखांकित करता है। आस्था व उत्साह के समिश्रण से लोग जन उत्सव को चरम पर पहुंचाते हैं। अपने राज्य में भी कुछ वैसा ही नजारा बन जाता है जैसा गणेश उत्सव के दौरान महाराष्ट्र में देखने को मिलता है। इस उत्सव के आनंद में सराबोर होने को लोग इसका बेसब्री से इंतजार करते हैं। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है। कई जगहों पर उत्सव के दौरान भय या तनाव का माहौल दृष्टिगोचर होता है। पूर्व में कुछ स्थानों पर तनाव बढ़ जाने पर प्रशासन को कड़ी कार्रवाई को मजबूर होना पड़ा। इस साल भी कहीं-कहीं कुछ ऐसी ही अप्रिय स्थिति की आशंका उत्पन्न होती दिखी। जब तक अखाड़ा जुलूस निकलते रहेंगे, इस तरह की आशंका बरकरार रहेगी। झारखंड में अलग-अलग तिथि को अखाड़ा जुलूस निकलते हैं। जमशेदपुर समेत कई जगहों पर रामनवमी के अगले दिन यानी गुरुवार को जुलूस निकाले जाएंगे। यह क्रम शुक्रवार को भी चलेगा। इसलिए हर किसी को अपने स्तर से इस उत्सव को निर्विघ्न रूप से सफल बनाने के लिए संकल्पित होना होगा। भाईचारे व मेलजोल के साथ त्योहार को मनाने के लिए हर स्तर पर काम करना होगा। एक दूसरे की भावनाओं को समझते हुए सौहार्द का परिचय देना होगा। प्रशासन को भी पूरी तरह से अलर्ट रहना होगा क्योंकि अशांति में ही अपना हित साधने का मौका खोजने वाली समाजविरोधी ताकतें हर पल सक्रिय रहती हैं। इस बार भी ऐसी ताकतों की मंशा- साजिश बेनकाब हो चुकी है। प्रशासन को सख्ती के लिए तैयार रहना होगा। पर यह संदेश भी नहीं जाना चाहिए कि प्रशासन की यह सख्ती अपनी भूल-चूक की भरपाई के लिए की गई है या किसी दूसरे वर्ग या पक्ष को तुष्ट-संतुष्ट करने के लिए। पूर्व में कई बार ऐसी बातें सामने आ चुकी हैं कि पुलिस प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए जुलूस का मार्ग बदलवाने का भी काम करता है जो बहुसंख्यक जनमानस की इच्छा के खिलाफ होता है। इस तरह की कार्रवाई से प्रशासन के काम करने के तरीके पर सवाल उठते हैं। जन उत्सव के रंग में भंग डालने को किसी को भी किसी भी स्थिति में छूट नहीं मिलनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]