( हाईलाइटर-शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी यदि इस तरह की घटना घटती है और परीक्षा के पहले छात्रों पर शुल्क चुका देने के लिए दबाव डाला जाता है तो इससे बड़ा और कोई दुर्भाग्य नहीं हो सकता है)
निजी स्कूलों में शिक्षा के नाम पर अभिभावकों से अनुदान के रूप में मोटी रकम वसूलने और छात्रों से भी अधिक शुल्क वसूलने की शिकायत मिलती रही है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने निजी शिक्षण संस्थानों को नियंत्रित करने के लिए कड़ा कदम उठाने की बात कही है। माध्यमिक परीक्षा खत्म हो जाने के बाद वह निजी स्कूल संचालकों के साथ बैठक करेंगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री की नजर सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों पर भी गई है। सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों की मनमानी प्रकाश में आने के बाद शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने उन्हें सतर्क भी किया है। शिक्षा मंत्री ने कहा है कि सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल प्रबंधन के छात्रों से अधिक शुल्क वसूलने की शिकायत सच होने पर उनके विरुद्ध भी कड़ा कदम उठाया जाएगा। उन्होंने स्कूल निरीक्षकों को चरणबद्ध रूप से सभी सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों की जांच कर रिपोर्ट देने को कहा है। शिक्षा मंत्री के मुताबिक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में प्रति छात्र से वार्षिक 250-300 रुपये शुल्क के तौर पर लिए जा सकते हैं। लेकिन स्कूल प्रबंधन स्कूल की मरम्मत, रख रखाव व अन्य मदों में वार्षिक 6000-7000 रुपये शुल्क के तौर पर प्रति छात्र से वसूलते हैं। साधारण और गरीब परिवार के छात्रों को भी यह शुल्क देना पड़ता है। यहां तक तो ठीक है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि शुल्क नहीं देने पर छात्रों को परीक्षा में बैठने से रोक दिया जाता है। सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में ऐसा होता है तो यह गलत है।
जाहिर है अभावग्रस्त परिवार ही अपने बच्चों का स्कूल फीस चुकाने में असमर्थ होता होगा। अगर कोई छात्र शुल्क नहीं जमा कर पाता है तो उसे किसी भी हाल में परीक्षा में बैठने से रोका नहीं जाना चाहिए। आखिर सरकारी अस्पताल में यदि किसी छात्र के साथ इस तरह होगा तो वह और कहां शिक्षा पाने की उम्मीद करेगा। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी यदि इस तरह की घटना घटती है और परीक्षा के पहले छात्रों पर शुल्क चुका देने के लिए दबाव डाला जाता है तो इससे बड़ा और कोई दुर्भाग्य नहीं हो सकता है।
सरकार निजी स्कूलों समेत सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों पर भी इस मामले में कार्रवाई करती है तो इसे सराहनीय कदम कहा जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]