हिमाचल को प्रकृति ने अनेक नेमतों से संवारा है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता के कारण ही बड़ी संख्या में हर साल देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं। प्रकृति के दिए संसाधनों से प्रदेश की अर्थव्यवस्था को संबल प्रदान किया है। पर्यटन स्थलों के दीदार के लिए आने वाले पर्यटकों से हजारों परिवारों का चूल्हा चलता है। बात प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की हो तो यह कहने में संकोच नहीं कि प्रदेश के राजस्व का बड़ा हिस्सा प्रकृति की बदौलत ही आता है। पनविद्युत परियोजनाओं से हो रहे उत्पादन से हर साल करोड़ों की कमाई प्रदेश को हो रही है। कई उद्योग यहां के संसाधनों का प्रयोग कर चांदी कूट रहे हैं और प्रदेश के लोगों को भी लाभान्वित कर रहे हैं। इन सबके बीच सीमेंट उद्योग ऐसा क्षेत्र है, जिसके होने से जनता को कोई विशेष लाभ जनता को नहीं मिल पाया है। प्रदेश में तीन बड़ी सीमेंट उत्पादन इकाइयां एसीसी बरमाणा, अंबुजा सीमेंट दाडलाघाट और जेपी सीमेंट बाघा स्थापित हैं। इससे बड़ी विडंबना क्या होगी कि हिमाचल में स्थापित इन सीमेंट कारखानों में बनने वाला सीमेंट प्रदेश में ही महंगा मिल रहा है। प्रदेश में पाए जाने वाले चूना पत्थर से प्रदेश की जनता को चूना लग रहा है जबकि कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं। पड़ोसी राज्यों में यही सीमेंट अपेक्षाकृत कम दाम में उपलब्ध हो रहा है। यह समझ से परे है कि हिमाचल प्रदेश के संसाधनों का प्रयोग करने के बावजूद ये कंपनियां लोगों को लाभ क्यों नहीं दे रहीं? प्रदेश सरकार को तो माइनिंग साइट से निकलने वाले कच्चे माल की रायल्टी व बिजली पानी से प्रदेश सरकार तो कमाई कर रही है, लेकिन लोगों को कुछ भी हासिल नहीं हो रहा। कंपनियों ने दाम कम नहीं किए हैं। 17 अक्टूबर को प्रदेश की तीनों सीमेंट कंपनियों ने 15 रुपये प्रति बैग सस्ता करने की बात सरकार के समक्ष मांगी थी, लेकिन विडंबना यह है कि अभी तक सीमेंट कंपनियों की ओर से कोई सार्थक कदम नहीं उठाया है। इस घोषणा के एक सप्ताह बीतने के बाद भी सीमेंट के दाम में गिरावट नहीं की गई है। सीमेंट कंपनियों पर शिकंजा कसने के लिए सरकार को टास्क फोर्स का गठन करना चाहिए ताकि हिमाचल के संसाधनों का प्रदेश के लोगों को लाभ मिल सके। ऐसा नहीं है कि सीमेंट के दाम पर राज्य सरकार की नजर नहीं है, लेकिन समान दाम के भरोसे पर सरकारें खरा नहीं उतर पाईं हैं। सरकारी स्तर पर किए जाने वाले उपायों व सुझावों पर सीमेंट कंपनियां ठोस कदम उठाने के लिए कतई तैयार नहीं है। अब यह जरूरी हो गया है कि सरकार सीमेंट कंपनियों के प्रति कड़ा रुख अपनाए और उन्हें मजबूर करे कि प्रदेश के लोगों को अन्य राज्यों के मुकाबले कम दाम पर सीमेंट उपलब्ध हो।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]