स्वच्छता के मामले में अच्छा और खराब प्रदर्शन करने वाले शहरों की नई सूची में उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब आदि राज्यों के अधिकांश शहर जिस तरह फिसड्डी दिख रहे हैं उससे यह साफ है कि कई राज्य अभी भी साफ-सफाई को लेकर गंभीर नहीं। सार्वजनिक स्थलों में सफाई को लेकर सजगता के इस अभाव के लिए मुख्यत: नगर निकायों के अफसर एवं कर्मचारी ही अधिक जिम्मेदार हैं। यह पहले से ही स्पष्ट है कि रही-सही कसर आम लोगों के सब चलता है वाले रवैये ने पूरी कर दी है। जब अन्य राज्यों की सरकारें, उनके नगर निकाय और वहां के आम नागरिक सजगता का परिचय दे सकते हैं तो फिर इसका कोई कारण नहीं कि अन्य राज्य सरकारें और साफ-सफाई के लिए जिम्मेदार उनका तंत्र ऐसा क्यों नहीं कर सकता? आज जब साफ-सफाई की महत्ता से सभी परिचित हैं तब यह निराशाजनक है कि कई राज्य सरकारें अपने नगर निकायों को यह जरूरी सबक सिखाने में नाकाम साबित हो रही हैं कि सार्वजनिक स्थलों में गंदगी के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। यदि नगर निकायों के मेयर और उनके अधिकारी एवं कर्मचारी साफ-सफाई को एक अभियान के तौर पर लें तो उसमें आम नागरिकों को आसानी से शामिल किया जा सकता है। नि:संदेह अगर किसी शहर के बाशिंदे चाहें तो वे अपने नगर निकायों और खास तौर पर पार्षदों को साफ-सफाई के मामले में उनकी बुनियादी जिम्मेदारी से उन्हें परिचित करा सकते हैं। आखिर जो काम इंदौर, भोपाल, विशाखापट्टनम, सूरत, मैसूर आदि में हो सकता है वही अबोहर, भुसावल, बुलंदशहर, कटिहार वगैरह में क्यों नहीं हो सकता?
यह समझने की जरूरत है कि स्वच्छता अभियान के प्रति गंभीरता का परिचय देने की जितनी आवश्यकता नगर निकायों के शासकों को है उतनी ही आम नागरिकों को भी। औसत भारतीय अपने घर में साफ-सफाई को लेकर तो खूब सचेत और सक्रिय रहता है, लेकिन घर के बाहर की स्वच्छता को लेकर आम तौर पर वह उदासीन ही नजर आता है। यही उदासीनता सार्वजनिक स्थलों की गंदगी बढ़ाने का काम करती है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि यह उदासीनता लोगों की मानसिकता में घर कर गई है। इस मानसिकता को बदलना कठिन अवश्य है, लेकिन असंभव नहीं। यदि यह असंभव होता तो स्वच्छ सर्वेक्षण-2017 की सूची मेंं मध्य प्रदेश और झारखंड के वे कई शहर अपना बेहतर स्थान बनाने में सफल नहीं रहते जो पिछले वर्ष इस सूची में बहुत पीछे दिख रहे थे। यह सही है कि शहरों को साफ-सुथरा रखने के मामले में राज्य सरकारें और उनके नगर निकाय संसाधन की कमी की शिकायत कर सकते हैं, लेकिन संसाधनों के साथ ही जिस जागरूकता की जरूरत है वह तो उन्हें खुद ही पैदा करनी होगी। यदि यह जागरूकता पैदा की जा सके और आम लोगों को यह अहसास कराया जा सके कि सार्वजनिक स्थल भी उनके अपने हैं और उनसे उनकी प्रतिष्ठा जुड़ी है तो संसाधनों की कमी से भी पार पाया जा सकता है। स्वच्छ भारत अभियान को और सफल बनाने के लिए यह भी आवश्यक है कि केवल खुले में शौच की आदत को दूर करने और इस क्रम में शौचालयों के निर्माण के साथ-साथ उन सभी प्रवृत्तियों के निदान पर भी ध्यान केंद्रित किया जाए जिनके चलते सार्वजनिक स्थलों में गंदगी फैलती है।

[  मुख्य संपादकीय  ]