पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने भारतीय नौसेना के पूर्व अधिकारी कुलभूषण जाधव को जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुनाकर भारत से संबंध सुधार की रही-सही उम्मीदों पर पलीता लगाने का ही काम किया है। पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान की यह हरकत दोनों देशों के संबंधों को रसातल में ले जाने के मामले में एक तरह से ताबूत में आखिरी कील की तरह है। भारत उचित ही इस नतीजे पर पहुंचा कि पाकिस्तान कुलभूषण को छल-छद्म से हर हाल में सजा सुनाने पर आमादा था और यदि वह फांसी की इस सजा पर अमल करता है तो इसे सुनियोजित हत्या माना जाएगा। पाकिस्तान ने पिछले वर्ष मार्च में जब कुलभूषण को बलूचिस्तान में सक्रिय रॉ एजेंट के तौर पर गिरफ्तार करने का दावा किया था तभी यह स्पष्ट हो गया था कि वह सनसनीखेज कहानी लेकर आया है। इसकी पुष्टि पाकिस्तान में कार्यरत रहे एक जर्मन राजनयिक ने यह कहकर की थी कि पाकिस्तानी सेना ने कुलभूषण जाधव को ईरान की सीमा से अगवा किया और फिर यह दिखा दिया कि उन्हें बलूचिस्तान से पकड़ा गया। हालांकि पाकिस्तानी अधिकारियों ने कुलभूषण जाधव को रॉ का जासूस साबित करने की कोशिश में उनका एक वीडियो भी जारी किया था, लेकिन इससे कुल मिलाकर यही अधिक साबित हुआ कि उन्हें वीडियो का सही तरह संपादन करना भी नहीं आता। यह वीडियो उसी क्षण झूठा साबित हो गया था जब कुलभूषण जाधव यह कहते सुने गए थे कि वह नौसेना के सेवारत अधिकारी हैं। पाकिस्तान की पोल तब भी खुली थी जब पाकिस्तानी सेना की ओर से यह दावा किया गया था कि उनके सेनाध्यक्ष ने इस्लामाबाद की यात्रा पर आए ईरान के राष्ट्रपति से कुलभूषण के मामले में बात की है। ईरानी राष्ट्रपति ने तत्काल ही ऐसी किसी बातचीत को बकवास करार दिया था।
कुलभूषण के मामले में पाकिस्तान के मन का चोर तब भी बेनकाब हुआ था जब उसने भारतीय अधिकारियों को उनसे संपर्क करने का अवसर नहीं दिया। भारत ने अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों का हवाला देकर कुलभूषण जाधव से संपर्क करने की बार-बार मांग की, लेकिन पाकिस्तान हर बार कन्नी काट गया। पिछले साल दिसंबर में पाकिस्तानी सेना के कपट की पोल खुद प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने पाकिस्तानी संसद में यह कहकर खोली थी कि कुलभूषण के खिलाफ पर्याप्त सुबूत नहीं मिले हैं। यह भी एक तथ्य है कि खुद पाकिस्तान में अनेक लोग यह मानते हैं कि कुलभूषण जाधव को अगवा कर उसे रॉ एजेंट इसलिए करार दिया गया, क्योंकि पाकिस्तानी सेना को प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की भारत से संबंध सुधार की कोशिश रास नहीं आ रही थी। चूंकि अब नवाज शरीफ राजनीतिक रूप से और कमजोर हो चुके हैं इसलिए इसकी उम्मीद कम है कि वह अपनी ही सेना की गंदी हरकत के खिलाफ कुछ कर सकेंगे। ऐसे में यह और आवश्यक हो जाता है कि भारत सरकार कुलभूषण जाधव का हश्र सरबजीत जैसा न होने दे। इसके लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए। भारत को इस्लामाबाद ही नहीं, सारी दुनिया को यह संदेश देने की जरूरत है कि पाकिस्तान किसी भारतीय नागरिक से मनमानी नहीं कर सकता।

[ मुख्य संपादकीय ]