सड़क हादसों को रोकना केवल सरकार या प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है। जब हर पक्ष जागरूक होगा और लोग वाहन चलाते समय यातायात नियमों का कड़ाई से पालन करेंगे तो हादसों की आशंका कम होगी।
-----------------
एक ही गलती जब बार-बार की जाए तो उसे गलती नहीं लापरवाही कहा जाता है। गलती से सबक सीखने में ही समझदारी है। त्रासदी यह है कि पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में गलतियों से सबक नहीं सीखा जा रहा है। तमाम दावों व प्रयासों के बावजूद पहाड़ की सड़कें लोगों के लिए सुरक्षित नहीं बन पाई हैं। इसी का नतीजा है कि हर दिन कई लोगों को सड़क हादसों में जान से हाथ धोना पड़ता है व कई लोगों को उम्रभर के लिए कभी न भूलने वाले जख्म मिलते हैं। शिमला जिला के नेरवा में गुम्मा के निकट एक निजी बस के टौंस नदी में गिरने से 46 लोगों की मौत दुखद है। इस हादसे के वास्तविक कारण क्या रहे, इसका पता तो जांच के बाद ही चल पाएगा मगर फिलहाल हादसे का कारण खराब सड़क पर चालक द्वारा लापरवाही से गाड़ी चलाना बताया जा रहा है। प्रदेश में सड़कें घुमावदार, तंग व खस्ताहाल हैं। अन्य राज्यों के चालक पहाड़ी प्रदेश की सड़कों पर वाहन चलाने के अभ्यस्त नहीं होते हैं। यही कारण है कि वे प्रदेश में हादसों का शिकार होते हैं। प्रदेश में अब तक हुए हादसों का मुख्य कारण चालकों की लापरवाही, वाहनों की तेज गति व ओवरलोडिंग है। हादसे दोबारा न हों, इसके लिए जरूरी है कि सड़कों की हालत सुधारी जाए। प्रदेश में कई ऐसे राष्ट्रीय राजमार्ग हैं जिनकी हालत संपर्क मार्गों जैसी हो गई है। ऐसे सभी मार्गों को जल्द से जल्द ठीक किया जाना चाहिए। वाहन चलाने वालों को भी दक्ष होना चाहिए। किसी नौसिखिये के हाथ में जब वाहन होगा तब हादसे की आशंका भी अधिक रहेगी। प्रदेश में कई ऐसे वाहनों को चलाया जा रहा है जिनकी हालत सही नहीं है। ऐसे वाहन हादसों का कारण बनते हैं जिनकी समय-समय पर जांच होनी चाहिए। जो वाहन अपनी उम्र पूरी कर चुके हों, उन्हें बदल दिया जाना चाहिए। एक पड़ताल यह भी हो कि प्रदेश में अब तक हुए हादसों की जांच का क्या हुआ। जांच में निकले निष्कर्ष को अमलीजामा पहनाया जाए और जिम्मेदार पक्ष अपनी भूमिका सक्रियता से निभाएं। हादसे रोकना केवल सरकार या प्रशासन की ही जिम्मेदारी नहीं है। जरूरत इस बात की भी है कि हर पक्ष जागरूक हो। लोग वाहन चलाते समय यातायात नियमों का कड़ाई से पालन करें। केवल यातायात कर्मी को देखकर ही सीट बेल्ट लगाने या हेलमेट पहनने की परंपरा जब खत्म हो जाएगी, सड़क हादसों पर अंकुश लग जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]