जेल को सुधारगृह कहा जाता है लेकिन राज्य की ज्यादातर जेलें इस अवधारणा के विपरीत कार्य कर रही हैं। कैदी यदि धन खर्च करने की कूबत रखते हैं तो उन्हें जेल की सलाखों के पीछे हर सुख-सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। जेलों में अक्सर छापेमारी होती है। वहां आपत्तिजनक सामग्री बरामद होती है लेकिन इस बात की पड़ताल कभी नहीं की जाती कि यह सामग्री जेल के भीतर कैसे पहुंच गई। राज्य की जेलों की यह हालत भांपकर सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ दिन पूर्व सजायाफ्ता कैदी मोहम्मद शहाबुद्दीन को सिवान से दिल्ली की तिहाड़ जेल शिफ्ट करवाया। जेल में बंद अधिसंख्य कैदी धड़ल्ले से मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं। शातिर अपराधी फोन पर ही रंगदारी भी वसूलते हैं। कई बार तो फोन पर हत्या व अन्य संगीन वारदातों की साजिश भी रची जाती है। सवाल यह है कि यदि कैदियों को सलाखों के पीछे भी अपराध करने की सुविधा उपलब्ध है तो ऐसी जेलों का क्या मतलब है? अपराधी तो अपराधी हैं। यदि उन्हें सुधरने के लिए माकूल माहौल नहीं मिलता तो वे हर परिस्थिति में अपराध करने को उत्सुक रहते हैं। जेलों की अराजकता के संदर्भ में असली 'अपराधीÓ जेल प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी हैं जिनके भ्रष्टाचार के कारण जेलें अपराधियों की ऐशगाह बन गई हैं। एक जेल डीआइजी के घर पर विजिलेंस छापे में अकूत संपत्ति मिली है। सबको पता है कि यह संपत्ति कैसे अर्जित की गई होगी। आश्चर्य की बात है कि जेलों में तमाम अनियमितताएं पकड़ में आती हैं लेकिन इनके लिए किसी अधिकारी की जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की जाती। छापे में बरामद सामग्री लेकर पुलिस चली जाती है। कभी यह सवाल खड़ा ही नहीं किया जाता कि अभेद्य दीवारों के पीछे मोबाइल फोन, सिम कार्ड, चरस-गांजा, चाकू और अन्य वस्तुएं किस तरह पहुंच जाती हैं। सरकार को जेलों की व्यवस्था के प्रति संवेदनशील बनना होगा। शासन को किरन बेदी जैसे अधिकारी चिन्हित करने होंगे जो राज्य की जेलों को तिहाड़ जेल की तरह बना दें। जेल प्रशासन में साहसी व ईमानदार छवि वाले अधिकारी तैनात किए जाने चाहिए। अच्छा तो यह होगा कि सरकार किसी सेवानिवृत्त या सेवारत न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक आयोग गठित करे तो तय समय सीमा में जेलों की व्यवस्था में सुधार के लिए अपनी संस्तुतियां दे। इन संस्तुतियों को प्रभावशाली ढंग से लागू किया जाए। जेल में यदि कोई अनियमितता सामने आती है तो उसकी जिम्मेदारी अनिवार्य रूप से निर्धारित की जाए तथा दोषी अधिकारियों को कड़ा दंड दिया जाए।
.....

प्रशासनिक भ्रष्टाचार और राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते राज्य की जेलें अपराधियों की ऐशगाह बनती जा रही हैं। यह चिंता का विषय है कि कैदियों को जेल परिसर में मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिए जाते हैं जिनके माध्यम से वे सलाखों के पीछे से रंगदारी वसूली और अन्य आपराधिक वारदातों को अंजाम देने में सफल रहते हैं।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]