आरक्षण की मांग को लेकर धरने पर जाट समुदाय के लोगों और प्रदेश सरकार के बीच अब तक सहमति नहीं बन सकी है। इससे प्रदेश को लोगों के बीच यह आशंका बलवती होती जा रही है कि कहीं पिछले वर्ष की तरह इस बार भी आंदोलन उग्र्र न हो जाए। सुकून देने वाली बात यह है कि जाट नेता रोज यह आश्वस्त कर रहे हैं कि आंदोलन शांतिपूर्ण रहेगा और उनकी लड़ाई सरकार से है। प्रदेश के किसी भी व्यक्ति का कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा। इस बार यह बात भी देखने को मिल रही है कि जाट समुदाय के धरनों पर अन्य समुदायों के लोग भी समर्थन देने पहुंच रहे हैं। जाहिर है कि वे भी जाट समुदाय की मांगों से सहमत हैं। सरकार भी उनकी ज्यादातर मांगो से सहमत है। आरक्षण तो वह दे ही चुकी है। अटका न्यायालय में है। उसके लिए भी पुरजोर कोशिश कर रही है। इसलिए जाट नेताओं को चाहिए कि वे संयम का परिचय दें। उग्र्र बयान देने से बचें, क्योंकि कोई भी आंदोलन यदि उग्र्र होता है तो वह स्वाभाविक रूप र्से ंहसक हो जाता है। फिर स्थिति किसी नेता के नियंत्रण में नहीं रहती। पिछले वर्ष हमने इसकी पीड़ा झेली भी है। तब आंदोलन के दौरान तीस से अधिक जानें चली गई थीं। करोड़ों की संपत्ति को नुकसान पहुंचा था और प्रदेश कई साल पीछे चला गया। संपत्ति के नुकसान की भरपाई तो देर सबेर हो जाएगी, लेकिन जो जानें चली गईं, वे अब नहीं लौटकर आएंगी। उनके परिवारों में तो अंधेरा छा गया। भले ही आर्थिक सहायता के नाम पर कुछ लाख की रकम मिल गई हो। बहुत से परिवार तो ऐसे हैं, जिन्हें आर्थिक सहायता भी नहीं मिल पाई। रोहतक की एक बुजुर्ग महिला का इकलौता बेर्टा ंहसा के दौरान घायल हुआ था, सात महीने के इलाज के बाद उसकी मौत हो गई। उसे प्रशासन पीड़ित नहीं मानता। बुजुर्ग मां इस दर से उस दर पर चक्कर काट रही है। ऐसे और भी लोग होंगे। इसलिए हमें हर हाल में उस दुखद दौर की पुनरावृत्ति नहीं होने देनी चाहिए। सभी पक्षों को, चाहे आंदोलनकारी हों अथवा सरकार या अन्य समुदाय के लोग उन्हें संयम बनाए रखना चाहिए। प्रदेश में अमन चैन बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]