पहाड़ी प्रदेश हिमाचल की पहचान शांत राज्य के रूप में होती है। इसका कारण यह है कि यहां देश के अन्य राज्यों के मुकाबले अपराध की दर कम है। लोगों का स्वभाव मिलनसार व अपनत्व का रहता है। अतिथि को भगवान का दर्जा दिया जाता है। इसलिए देश-विदेश से हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक यहां घूमने आते हैं और प्रकृति के अद्भुत नजारों का दीदार करते हैं। पिछले कुछ अर्से से प्रदेश में अपराध की घटनाओं में होती वृद्धि इसकी छवि को धूमिल कर रही है। अपराध का बढ़ता ग्राफ गिरते सामाजिक मूल्यों का भी परिचायक है। समझना होगा कि अपराध किसी भी स्तर पर हो, समाज के लिए सुखद संकेत नहीं है। प्रदेश में हत्या, दुष्कर्म, चोरी, नशीले पदार्थो की तस्करी व लूट के मामले अब रोज की बात बनते जा रहे हैं। आपराधिक घटनाएं प्रदेश की कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं जिससे लोगों में असुरक्षा का बोध पनपने लगा है। अपराधी बेखौफ होकर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। लोग न तो घर में और न ही बाहर खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसे पुलिस तंत्र की नाकामी कहें या अपराधियों के बढ़ते हौसले कि दावों के बावजूद अपराध में कोई कमी नहीं आ रही है। चिंतपूर्णी में पटियाला की युवती से दुष्कर्म, नूरपुर में महिला से हेरोइन की बरामदगी, मंडी व कुल्लू में चरस-अफीम की बरामदगी, बैजनाथ में बच्ची से दरिंदगी के मामले महज घटनाएं नहीं हैं बल्कि सोचने पर मजबूर करती हैं कि पहाड़ के बाशिंदे किस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। किसी के भरोसे का खून करना पहाड़ की संस्कृति का हिस्सा कभी नहीं रहे। अब जरूरी है कि सरकार व पुलिस अपराध को रोकने की दिशा में त्वरित कदम उठाए ताकि लोगों में सुरक्षा की चिंता न हो। लोगों का भी दायित्व है कि अपराध को छिपाएं नहीं और पुलिस को पूरा सहयोग दें। मूकदर्शक बनकर अपराध सहने या देखने से अच्छा है कि आवाज बुलंद कर उसे रोकने में सहायक बनें। अपराधियों के हौसले को कुंद करने के लिए समाज को ही पहल करनी होगी। जब तक समाज जागरूक नहीं होगा, आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश नहीं लग पाएगा। अपराध तभी जन्म लेता है जब समाज लापरवाह हो जाता है। अपराध के खात्मे के लिए समाज को सजग, निडर व एकजुट होना होगा। कुछ लोगों की गलत सोच के कारण प्रदेश की छवि को धूमिल नहीं होने दिया जा सकता है।

[स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]