राजनीतिक दलों के नेता आए दिन कुछ न कुछ बदजुबानी करते रहते हैं, जिस पर हो-हल्ला होता है और बाद में सब कुछ शांत हो जाता है। नई कड़ी में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सांसद भतीजे व युवा तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष अभिषेक बनर्जी का नाम जुड़ गया है। उन्होंने एक सभा में जिस तरह का बयान दिया है, उसे लेकर राजनीति गरम है। उन्होंने जो कहा है, उससे विपक्षी दलों का सशंकित होना स्वाभाविक है, क्योंकि उनके बयान से ज्यादा डर विपक्षी दलों के नेताओं व कार्यकर्ताओं को ही है।

प्रदेश भाजपा ने तो अभिषेक के खिलाफ थाने में प्राथमिकी भी दर्ज कराई है। अभिषेक ने पार्टी की ओर से आयोजित सभा में सार्वजनिक रूप से कहा है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के राज में जनता को कोई आंख दिखाएगा तो उसकी आंख निकाल लेंगे और कोई हाथ उठाएगा तो उसका हाथ काट लेंगे, हालांकि अभिषेक ने किसी का नाम लिए बिना इस तरह का बयान दिया है, लेकिन विपक्षी नेताओं को लगता है कि अभिषेक का इशारा उनकी तरफ ही है इसलिए माकपा, भाजपा और कांग्रेस ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।

लोकतंत्र में सत्तारूढ़ दल के आपत्तिजनक कुछ करने पर विपक्षी दलों को विरोध करने का अधिकार है इसलिए लोकतांत्रिक तरीके से विपक्षी दलों ने अभिषेक के बयान पर जिस तरह कड़ा विरोध जताया है, वह तर्कसंगत है। अभिषेक इस तरह के बयान देने वाले पहले तृणमूल नेता नहीं है। वीरभूम के जिला तृणमूल अध्यक्ष अनुब्रत मंडल, विधायक मनिरुल इस्लाम से लेकर सांसद तापस पाल समेत कई और हैं, जो बदजुबानी कर चुके हैं। पिछले सप्ताह ही तृणमूल कांग्रेस छात्र परिषद के एक नेता ने थाना प्रभारी को थाने को बम से उड़ाने की धमकी दी थी, हालांकि उक्त छात्र नेता को तत्काल संगठन से निलंबित कर दिया गया।

तृणमूल नेतृत्व का यह कदम सराहनीय है, लेकिन अभिषेक से भी यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि पार्टी में क्या अलग-अलग स्तर के नेताओं के लिए अलग-अलग नियम हैं? गैर जिम्मेदाराना व आपत्तिजनक बयान देने के लिए जब छात्र नेता को पार्टी से निलंबित किया जा सकता है तो क्या अभिषेक के खिलाफ पार्टी स्तर पर कार्रवाई क्यों नहीं हो सकती? तृणमूल के किसी भी बड़े नेता ने इस मुद्दे पर मुंह नहीं खोला है। ममता बनर्जी के बाद अभिषेक पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत रखते हैं। एक तरह से पार्टी की कमान अभिषेक के हाथों में ही है। इस दृष्टि से तो उन्हें और संयमित व अनुशासित रहना चाहिए। वह जिस तरह का आचरण करेंगे, उसी तरह का आचरण पार्टी के दूसरे नेता भी करेंगे। मामला थाने से लेकर कोर्ट तक पहुंचने की प्रक्रिया में है, लेकिन अभिषेक ने इस पर न सफाई देने की जरूरत समझी और न ही भूल स्वीकार की। इससे अभिषेक के नेतृत्व क्षमता पर भी सवाल खड़ा होता है।

(स्थानीय संपादकीय पश्चिम बंगाल)