जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर के निकट पांपोर में आतंकियों की ओर से घात लगाकर किए गए हमले में सीआरपीएफ के आठ जवानों की शहादत एक बड़ी क्षति है। यह जितना दुर्भाग्यपूर्ण है उतना ही चिंताजनक भी कि देश को रह-रह कर इस तरह की क्षति को सहन करना पड़ रहा है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के चलते हमारे सुरक्षा बलों को जो क्षति उठानी पड़ रही है वह युद्धकाल से भी कहीं अधिक है। एक तरह से यहां जारी छद्म युद्ध कहीं अधिक घातक साबित हो रहा है। यह छद्म युद्ध सीमा पार यानी पाकिस्तान से संचालित है और जब तक भारत ऐसा कुछ नहीं करता जिससे पाकिस्तान की सेहत पर असर पड़े तब तक उस पर लगाम लगने के आसार नहीं हैं। यह पाकिस्तान प्रेरित, प्रायोजित और आधारित आतंकवादी संगठनों के दुस्साहस का प्रमाण है कि वे आतंकी हमलों की जिम्मेदारी लेने में कोई संकोच नहीं दिखा रहे हैं। गत दिवस के हमले की जिम्मेदारी लश्कर ने ली है, लेकिन यह अन्य किसी आतंकी संगठन का भी काम हो सकता है। जो भी हो, आतंकी संगठनों के दुस्साहस का दमन करने के लिए हर संभव जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए। वस्तुत: अब समय आ गया है कि जम्मू-कश्मीर में रह-रह कर सिर उठाने वाले आतंकी संगठनों से निपटने के लिए नए और सख्त तौर-तरीके अपनाए जाएं। ऐसा इसलिए आवश्यक है, क्योंकि पिछले कुछ समय से पुलिस के साथ-साथ सुरक्षा एवं सैन्य बलों हमले की घटनाएं बढ़ी हैं। इन हमलों का एक मकसद अमरनाथ यात्रा के पहले दहशत का माहौल बनाना भी हो सकता है।

यह ठीक नहीं कि कश्मीर में जब भी कोई बड़ी आतंकी घटना घटती है, सरकार की ओर से यह सुनने को मिलता है कि अतिरिक्त चौकसी बरती जाएगी और आतंकियों को मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। आखिर यह काम कब होगा? सवाल यह भी है कि आतंकी हमलों के दौरान सतर्कता में कमी की बात क्यों सामने आती है? पांपोर में आतंकी सीआरपीएफ की बस को निशाना बनाने में इसलिए सफल रहे, क्योंकि यह नहीं जांचा-परखा जा सका कि जिस मार्ग से इस बस को गुजरना था वहां किसी तरह का कोई खतरा तो नहीं? कश्मीर जैसे आतंकियों की सक्रियता वाले इलाके में तो चौकसी में थोड़ी सी भी चूक घातक हो सकती है। सुरक्षा बलों की हिफाजत के लिए जो भी जरूरी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है उनमें किसी स्तर पर कहीं कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए, क्योंकि जब आतंकी सुरक्षा बल के जवानों को निशाना बनाने में सफल होते हैं तो इससे उन तत्वों का भी मनोबल बढ़ता है जो आतंकवाद के दबे-छिपे समर्थक हैं। राज्य एवं केंद्र सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकतीं कि पिछले कुछ समय से आतंकियों के समर्थन में सड़कों पर उतरने का सिलसिला बढ़ा है। इसके अलावा सीमा पार आतंकी प्रशिक्षण के लिए जाने वाले युवकों की संख्या में भी वृद्धि होती जा रही है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि सीमा पार प्रशिक्षण के लिए जाने वाले आतंकी घुसपैठ के जरिये कश्मीर में दाखिल होने में सक्षम हैं। जब तक यह सिलसिला कायम रहेगा तब तक आतंकवाद की कमर तोडऩा मुश्किल होगा। यह ठीक है कि जम्मू कश्मीर की पाकिस्तान से लगी सीमा दुर्गम है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उसे अभेद्य न बनाया जा सके।

[ मुख्य संपादकीय ]