निजीकरण के विरोध में राज्य परिवहन के आंदोलनरत कर्मचारियों ने आखिरकार हड़ताल वापस ले ली और तीन दिन से हलकान प्रदेश की जनता को राहत मिल गई। कर्मचारी संगठनों की हड़ताल के कारण पूरी परिवहन व्यवस्था ठहर सी गई थी। ऐसे में राज्य सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और निजी रूट परमिट जारी करने की नीति पर फिलहाल रोक लगा दी गई। इसमें कोई दोराय नहीं कि राज्य परिवहन लगातार उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहा है और इसकी सफलता में कर्मचारियों की लगन और मेहनत भी शामिल रही है। लेकिन बदलते परिवेश में लोगों की अपेक्षाएं तेजी से बढ़ रही हैं। ऐसे में परिवहन सुविधाओं पर अतिरिक्त दबाव है। फिलहाल परिवहन बेड़े में 4200 बसें हैं और करीब 900 निजी ऑपरेटर भी काम कर रहे हैं। एक हजार अतिरिक्त बसें शामिल करने की योजना पर काम चल रहा है। आवश्यकता 10 हजार बसों की है। सरकार के पास इतने संसाधन नहीं कि वह तेजी से इस बेड़े का विस्तार कर सके। ऐसे में सरकार को फिर से निजी ऑपरेटरों की तरफ ही देखना पड़ेगा। भले ही तात्कालिक तौर पर सरकार इस नीति पर विराम लगा दे लेकिन यह अंतिम हल नहीं है।
आवश्यक है कि कर्मचारी यूनियनें भी सरकार की मजबूरी को समझे। अभी हम केवल बसों की संख्या पर ही अटके हुए हैं जबकि सुविधाओं पर तो अभी विचार ही नहीं हुआ है। आवश्यकता है आधारभूत ढांचे में तेजी से विस्तार हो। बेड़े में बेहतर बसें शामिल हों। बस अड्डों की सुरक्षा का मसला तो और भी बड़ा है। तकनीकी युग में भी टिकट के लिए पुरातन व्यवस्था ही जारी है। क्या यह उम्मीद की जा सकती है कि सरकार जादू की छड़ी चलाएगी और सब एकदम से बदल जाएगा? कदाचित नहीं। निजी भागीदारी के बिना किसी भी सेवा क्षेत्र में व्यापक बदलाव संभव नहीं हो पाया। ऐसे में कर्मचारी संगठनों को भी व्यापक दृष्टिकोण अपनाते हुए जनता की जरूरतों को समझना होगा। अगर आवश्यकता पड़ी तो कुछ ठोस निर्णय लेने से नहीं हिचकना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]