राजधानी की आबोहवा को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए परिवहन विभाग द्वारा 178 प्रदूषण जांच केंद्रों को नोटिस जारी करना, 14 का लाइसेंस निलंबित करना और पांच की मान्यता रद करना सराहनीय है। जब तक सख्त रवैया नहीं अपनाया जाएगा, सुधार संभव नहीं है। इसमें संदेह नहीं कि प्रदूषण जांच केंद्र धांधली का अड्डा बन चुके हैं। ढंग से जांच किए बगैर प्रमाणपत्र जारी कर दिए जाते हैं। जांच केंद्रों की लापरवाही का ही नतीजा है कि प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र होने के बावजूद दिल्ली में जहां-तहां वाहन धुआं छोड़ते दिखाई दे जाते हैं। दूसरी तरफ राजधानी में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए अक्टूबर तक 20 नये मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने का निर्णय भी काबिले तारीफ है। उम्मीद है टेंडर भी जल्द जारी कर दिए जाएंगे।1दरअसल, दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या गहराती जा रही है। हर स्तर पर लापरवाही बरती गई है। कभी सोचा ही नहीं गया कि एक दिन यह प्रदूषण जानलेवा बन सकता है। अब जबकि पानी सिर से ऊपर जा चुका है तो हर स्तर पर हाय तौबा वाली स्थिति बनी हुई है। एक ओर सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के बेहतरी की बात की जा रही है तो दूसरी ओर औद्योगिक क्षेत्रों और इकाइयों पर निगरानी करने की, थर्मल पावर प्लांट बंद करने की योजना बन रही है। ई- वाहनों को बढ़ावा देने की भी बात हो रही है। निस्संदेह यह सभी प्रयास स्वागत योग्य हैं, लेकिन समझना यह भी होगा कि प्रदूषण की रोकथाम के लिए जब तक सामूहिक भागीदारी नहीं होगी। तब तक तमाम उपाय कागजी ही साबित होते रहेंगे। यह भागीदारी भी एकदम धरातल से लेकर उच्च स्तर तक होनी चाहिए। सभी विभागों को आपस में तालमेल बैठाकर चलना होगा। ऊपर के स्तर पर तो नीति और नियम-कायदे ही बनाए जा सकते हैं, उन्हें ईमानदारी से लागू करने की जिम्मेदारी स्थानीय निकायों की है। वैसे भी प्रदूषण अब सामाजिक समस्या बन चुका है, इसके निदान के लिए भी अब समूह स्तर पर ही प्रयास करने होंगे। आम जनता को जागरूक भी करना होगा। जागरूकता से ही प्रयासों में तेजी आ पाएगी।

[  स्थानीय संपादकीय : दिल्ली  ]