प्रदेश के उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री विपुल गोयल का ‘पंछी’ अभियान काबिल-ए-तारीफ है। वैसे यह अभियान सिर्फ विपुल गोयल या सरकार का ही नहीं, पूरे समाज का, हर संस्था का, हर व्यक्ति का होना चाहिए। प्रदेश में गर्मियों में औसत तापमान 45-50 डिग्र्री सेल्सियस तक चला जाता है। नारनौल में अभी ही 45 पार हो रहा है। हरियाणा में वैसे ही भूजल स्तर काफी नीचे है। गर्मियों में तो पानी पाताल ही चला जाता है। ऐसी स्थिति में हम तो अपने लिए कैसे न कैसे पानी का जुगाड़ कर लेते हैं, पर पशुओं और पक्षियों को पानी मिलना मुश्किल हो जाता है। तपते मौसम में उन्हें आसानी से न तो पानी मिल पाता है और न ही दाना. थोड़ी-बहुत चिड़ियां, जो हमारे घरों के आंगन, बालकनी में अन्य मौसम नें कभी-कभार दिख जाती हैं, उनका भी आना बंद हो जाता है। यदि हम इन बेजुबान प्राणियों के लिए भी दाना-पानी का इंतजाम कर दें तो यह उनके लिए तो सुखद एहसास होगा ही हमारे लिए भी सुख की अनुभूति देने वाला होगा। वैसे भी समाज के बहुत से लोग प्याऊ लगवाते हैं। हम यदि प्याऊ नहीं भी लगवा सकते तो इतना तो कर ही सकते हैं कि हम अपने घरों के आंगन, सोसायटी या मोहल्ले में और अपने दफ्तर में पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था कर दें। प्राचीन काल में हमारे समाज में ऐसी व्यवस्था थी। मंदिर में चढ़ने वाला जल एक पात्र में इकट्ठा होता रहता था, जहां पक्षी अपनी प्यास बुझाया करते थे। हमें वैसी ही परंपरा घर पर बनानी चाहिए। गर्मी में जब प्यास बुझाने वाले कुएं, तालाब और हैंडपंप स्वंय एक एक बूंद पानी को तरसते है तो उस स्थिति में हमें इन पशु-पक्षियों के लिए पानी की ब्यवस्था करना जरूरी हो जाता है। जब प्रदेश का कोई मंत्री इस तरह का अभियान चला रहा है तो हमें भी इसमें बढ़ चढ़कर भागीदारी करनी चाहिए। हम खुद तो अपने घरों की छतों पर, आंगन में, मिट्टी के सकोरों में पानी रखें और अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रोत्साहित करें। साथ ही यह भी ध्यान रखें कि पानी ऐसा जगह रखा जाए, जहां छाया हो। इससे पानी गर्म नहीं होगा और पक्षी अपनी प्यास बुझा सकेंगे और तभी यह अभियान सार्थक होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]