शराबबंदी पर सरकार जिस शिद्दत से तल्ख है, प्रशासनिक स्तर पर वह गति नहीं दिखती। कई जगहों पर तो पुलिस और प्रशासन के बीच अंतर्विरोध भी दिखता है। राज्य के विभिन्न हिस्सों से ऐसी खबरें भी आ रही हैं, जहां पुलिस की अवैध शराब के कारोबारियों से ङ्क्षहसक झड़प हो जा रही है। कई इलाके तो आज भी कार्रवाई के मामले में अनछुए हैं। पुलिस उन इलाकों में जाना नहीं चाहती। समस्या तब खड़ी हो जाती है जब महिलाएं कवच के रूप में पुलिस के सामने आ जाती हैं। ये महिलाएं उन परिवारों से हैं, जिनका संबंध पूर्व में शराब के कारोबार से रहा है। हजारों लीटर शराब चूहों द्वारा गटक जाने का मामला भी कार्रवाई के स्तर पर निष्ठा का पैमाना है। लगातार विभिन्न हिस्सों से शराब की बरामदगी और कार्रवाई के खिलाफ ङ्क्षहसक आचरण यह बताने के लिए काफी है कि पूर्ण शराबबंदी पर अभी बहुत काम करना शेष है। विशेषकर जागरूकता के मोर्चे पर शासन के साथ-साथ आम जनता को भी जोर लगाना होगा। इन दिनों शराब की जब्ती बढ़ गई है। वजह, कई शहरों में निकाय चुनाव प्रक्रिया में है। प्रत्याशी वोट पाने के पुराने हथकंडे को अब भी अपनाने की कोशिश में हैं। ऐसे प्रत्याशियों पर प्रशासन को कड़ी निगाह रखनी होगी। हालांकि शराबबंदी कानून के सख्त प्रावधानों का असर भी दिख रहा है। कई घर-मकान सील कर दिए गए। लोगों में कानून का डर तो है, लेकिन यह डर जब तक समझदारी और सम्मान में नहीं बदल जाता, शराबंबदी का उद्देश्य पूरा नहीं होता। कार्रवाई के स्तर पर भी निष्ठा की जरूरत है। यहां सुपौल का एक उदाहरण दिया जा सकता है। वहां के जिलाधिकारी ने शराबबंदी के खिलाफ पुलिस और उत्पाद विभाग द्वारा की गई कार्रवाई पर सवाल खड़े किए। पूछा कि जब तेरह हजार लीटर शराब की जब्ती हुई तो तीन हजार लीटर के अधिहरण का प्रस्ताव ही क्यों आया? अभियान के तहत जब पुलिस विभाग ने 9407 और उत्पाद विभाग ने 2599 छापेमारी की तो महज तीन फीसद मामलों में ही प्राथमिकी क्यों दर्ज की गई? वाकई ऐसे सवालों से कई सवाल पैदा होते हैं। एक उदाहरण यह भी है कि शराब के कारोबोरियों से मिलीभगत पर पटना के पूरे जक्कनपुर थाने को लाइन हाजिर कर दिया गया। जिस अस्पताल में लोग शराब पीते पकड़े गए उसे भी सील करने का निर्देश दे दिया गया। कुल मिलाकर मामला इच्छाशक्ति और सतर्कता का है। पुलिस और प्रशासन के साथ आम जन का सहयोग ही शराबबंदी की कामयाबी को बुलंदियों तक पहुंचाएगा।
------------
हाईलाइटर
शराबबंदी को लेकर कहीं सटीक तो कहीं लचर कार्रवाई के उदाहरण पेश होते रहे हैं। कहीं जब्ती का हिसाब-किताब गड़बड़ है तो कहीं चूहे भी इस शौक में शामिल हो गए हैं। जरूरत है इस मोर्चे पर शासन के साथ-साथ प्रशासन और आम जन भी जोर लगाएं, ताकि अधिकाधिक फलाफल हासिल हो।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]