कोई भी पुरस्कार या सराहना मिलने पर प्रसन्नता के साथ ही आत्मसम्मान का अनुभव होता है। साथ ही यह अपने साथ और अधिक सतर्कता एवं दायित्वबोध के लिए भी प्रेरित करता है। सराहनीय है कि पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश को गुणात्मक शिक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए देशभर में पहले पायदान पर रखा गया है व पुरस्कार मिला है। यह उपलब्धि इसलिए भी बड़ी है कि हिमाचल ने साक्षरता के क्षेत्र में पहले पायदान पर चल रहे राज्य केरल को पीछे छोड़ा है। इसके अलावा कई बड़े राज्य हिमाचल प्रदेश के सामने बौने नजर आए। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट-2016 (असर) के अनुसार 589 जिलों व 17,473 गांवों में तीन से छह साल की आयु के 5,62,305 बच्चों के बारे में जानकारी जुटाकर सर्वेक्षण किया गया। प्रदेश में सभी जिलों के 357 गांवों के 9557 बच्चों के ज्ञान का स्तर आंका गया। यहां छह से 14 वर्ष की आयु वर्ग का नामांकन 99.8 प्रतिशत रहा। भाषा व गणित में बुनियादी शिक्षा की उपलब्धि का स्तर देशभर में प्रथम स्थान पर रहा। इस वर्ष गणित में निजी विद्यालयों की अपेक्षा सरकारी विद्यालयों में जाने वाले बच्चों के ज्ञान के स्तर में अपेक्षाकृत बढ़ोतरी हुई है। अंग्रेजी पढऩे की क्षमता में भी प्रदेश में बढ़ोतरी दर्ज की और देशभर में पांचवां स्थान हासिल किया। सरकार, शिक्षकों के साथ अभिभावकों के लिए यह नई चुनौती है, जिसका सामना करने के लिए सबको समान भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी ताकि प्रदेश ने जो उपलब्धि हासिल की है, उसे आगामी वर्षों में भी कायम रखा जा सके। सरकारी स्तर पर अपेक्षित है कि स्कूलों में आधारभूत ढांचा विकसित किया जाए और अध्यापकों की कमी के कारण विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित न हो। शिक्षकों को जी-जान लगाकर बच्चों को पढ़ाना होगा व उनके ज्ञान में वृद्धि के लिए लगातार नई विधियों का प्रयोग करना होगा। अभिभावक इसकी मुख्य कड़ी हैं, इसलिए उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। दोराय नहीं कि प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य हो रहा है और उसमें लगातार बेहतर करने के प्रयास भी जारी है। लेकिन पुरस्कार मिलने से जिम्मेदारी बढ़ती है, इसलिए ऐसे प्रयास किए जाने जरूरी हैं। सबसे जरूरी है कि प्रयासों में संजीदगी का पुट हो। सामूहिक प्रयास से बेहतर परिणाम की उम्मीद स्वत: बढ़ जाती है।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]