यह अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग ने वादे के मुताबिक सभी दलों की बैठक बुलाकर उन्हें यह दिखाया-समझाया कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पूरी तरह सुरक्षित है और उसके साथ किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की जा सकती, लेकिन इसमें संदेह है कि उन राजनीतिक दलों के नेता शांत बैठेंगे जिनका एक मात्र इरादा इस मशीन के साथ-साथ आयोग को भी कठघरे में खड़ा करना है। भूलें नहीं कि केजरीवाल ने कैसे आयोग को धृतराष्ट्र और भाजपा को दुर्योधन की संज्ञा दी थी?

हालांकि चुनाव आयोग संदेह से भरे नेताओं को यह साबित करने का भी मौका देने जा रहा है कि ईवीएम में छेड़छाड़ की जा सकती है, लेकिन हैरत नहीं कि ऐसे नेता उस मौके पर भी किसी न किसी बहाने अपने कुतर्क पेश करना जारी रखें। जो भी हो, सबको यह समझने की जरूरत है कि दुनिया की किसी भी मशीन की तरह ईवीएम में भी छेड़छाड़ हो सकती है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि ऐसा हो जाने के बाद भी किसी को और यहां तक चुनाव अधिकारियों को इसका पता नहीं चलेगा। ईवीएम की प्रणाली इस तरह की है उसमें छेड़छाड़ होते ही वह काम करना बंद कर देगी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कुछ दलों के नेता जानबूझकर इस बुनियादी तथ्य से अनजान बने रहकर अपनी राजनीति चमकाने और लोगों को बरगलाने में लगे हुए हैं। इसकी पुष्टि इससे भी होती है कि महाराष्ट्र के निकाय चुनावों में कथित तौर पर ईवीएम के चलते खुद को एक भी वोट न मिल पाने का रोना रोने वाले नेता का दावा झूठा निकला। ऐसे नेताओं के खिलाफ तो जनता को गुमराह करने के आरोप में कार्रवाई होनी चाहिए। यह ठीक बात नहीं कि चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था को कोई नितांत झूठे आरोप लगाकर बदनाम करे।

अब यह भी कोई रहस्य नहीं कि बीटेक की अपनी डिग्री का रौब दिखाकर आम आदमी पार्टी के एक विधायक ने दिल्ली विधानसभा में नकली ईवीएम के साथ जो किया वह हास्यास्पद तमाशे के अलावा और कुछ नहीं था। चूंकि चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भविष्य में सभी चुनाव पर्ची वाली ईवीएम से होंगे इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि मतपत्र के जरिये चुनाव की गैर जरूरी मांग कुछ नरम पड़ेगी। मतपत्र से चुनाव कराने की मांग एक तरह से देश को बैलगाड़ी युग में ले जाने वाली मांग है।

पर्ची वाली ईवीएम में मतदाताओं को एक तो यह दिखेगा कि उसका वोट इच्छित उम्मीदवार को गया और दूसरे एक पर्ची भी निकलेगी। ऐसी सभी पर्चियों को सुरक्षित रखा जाएगा ताकि विवाद की स्थिति में उनकी गिनती की जा सके। उचित यह होगा कि पर्ची वाली ईवीएम के प्रति भी असहमति में सिर हिलाने वाले लोगों को संतुष्ट करने के लिए आयोग ऐसी कोई व्यवस्था करे कि कुछ सीटों पर वोटों की गिनती के साथ ही पर्चियों की भी गिनती की जाए। इन कुछ सीटों का चयन औचक आधार पर किया जाए। इससे ही उन नेताओं को जवाब देने में आसानी होगी जो राजनीतिक शरारत के तहत ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं। ऐसे नेताओं को आरोप लगाने वाली मशीनों के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। 

[ मुख्य संपादकीय ]