पंजाब में अलग-अलग विभागों के कर्मचारियों की ओर से अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन लंबे समय से जारी है। हर बार प्रदेश में जब चुनाव नजदीक आते हैं तो विरोध प्रदर्शनों की बाढ़ आ जाती है। सरकार पर दबाव बनाने के लिए कर्मचारी यूनियन विरोध के कई ऐसे तरीके भी अपनाने लगती हैं जिसे वाजिब नहीं ठहराया जा सकता है। कुछ ऐसा ही किया है ईटीटी शिक्षकों ने। आखिरकार पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट को टावर पर चढ़े ईटीटी शिक्षकों के मामले में यूनियन के बारे में कड़ी टिप्पणी करनी पड़ी। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यूनियन टावर पर चढ़े शिक्षकों का इस्तेमाल कर रही है ताकि सरकार पर दबाव बनाया जा सके। आंदोलनरत हर यूनियन के पदाधिकारियों को कोर्ट की इस सख्त टिप्पणी पर ध्यान देना चाहिए। यह तो ध्यान रखा ही जाना चाहिए कि विरोध प्रदर्शन के दौरान कोई भी ऐसा कदम न उठाया जाए जिससे कानून व्यवस्था के संकट की स्थिति पैदा हो जाए। कुछ समय पहले पटियाला में आंदोलनरत नर्सों ने भी गलत तरीका अपनाया था। नर्सिंग यूनियन की प्रधान ने भाखड़ा नहर में छलांग लगा दी थी जिसके बाद अफरातफरी का माहौल बन गया था। मुख्यमंत्री के गृह जिले श्री मुक्तसर साहिब में तो यह स्थिति बन गई थी कि पानी की टंकियों की सीढिय़ों पर दीवार खड़ी करनी पड़ी क्योंकि आए दिन वहां पर विरोध प्रदर्शन करने वाले अपनी मांगों को मनवाने के लिए टंकियों पर चढ़ जाते थे और कूदने की धमकी देते थे। हर किसी को सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने का हक है लेकिन इस दौरान कोई भी अप्रिय तरीका नहीं अपनाया जाना चाहिए। सरकार को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समय रहते कर्मचारियों की वाजिब मांगों पर विचार किया जाए। आमतौर पर देखने में यही आता है कि सरकार भी तब जागती है जब कानून व्यवस्था की चुनौती पैदा हो जाती है। ईटीटी शिक्षकों के मामले में हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के सचिव को भी तलब करने के साथ ही नियुक्ति प्रकिया से जुड़ी जानकारी भी पंजाब सरकार से मांग ली है। इतना ही नहीं कोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया में लगने वाले समय और मौजूदा हालात पर ठोस जवाब देने के निर्देश भी दिए हैं। अब चूंकि कोर्ट ने मामले का संज्ञान ले लिया है इसलिए सरकार को सारी स्थिति स्पष्ट करनी ही पड़ेगी लेकिन बेहतर यही होगा कि सरकार व विभागों के अधिकारी समय रहते सक्रियता दिखाएं जिससे कोई भी आंदोलन, विरोध-प्रदर्शन समस्या न बनने पाए। कर्मचारी यूनियनों के पदाधिकारियों को भी टकराव का रास्ता छोड़कर बातचीत के रास्ते पर आगे बढऩा चाहिए। अडिय़ल रवैया अपनाना किसी के भी हित में नहीं है। माहौल खराब होने पर कोई भी पक्ष जवाबदेही से बच नहीं सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]