पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर वैसी ही घिनौनी हरकत को अंजाम दिया जिसके लिए वह कुख्यात है। उसने पहले संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए भारतीय सेना एवं सीमा सुरक्षा बल के जवानों को अपनी गोली का निशाना बनाया और फिर उन दोनों के शव क्षत-विक्षत कर दिए। यह कबीलाई युग वाली बर्बरता के अलावा और कुछ नहीं, लेकिन पाकिस्तानी सेना से सभ्य आचरण की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। जो सेना एक नीति के तहत आतंकियों को संरक्षण देने के साथ ही उनसे मिलकर काम करती हो वह किसी भी तरह का तुच्छ व्यवहार कर सकती है। वैसे भी यह पहली बार नहीं जब उसने भारतीय जवानों को मारने के बाद उनके शवों के साथ घृणित हरकत की हो। वह रह-रह कर ऐसा करती है। एक बार तो वह एक शहीद सैनिक का सिर ही ले गई थी। पाकिस्तानी सेना की ताजा हरकत के बाद स्वाभाविक तौर पर देश में गुस्से की लहर है और सरकार एवं सेना पर इसका दबाव है कि वह पाकिस्तान को सबक सिखाए। इसके प्रति सुनिश्चित हुआ जा सकता है कि सेना अपने हिसाब से पाकिस्तानी सेना के पागलपन का बदला लेगी, लेकिन अब जरूरत ऐसा कुछ करने की है जिससे उसके होश ठिकाने आ जाएं। भारत सरकार को यह समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान एक सिरफिरे तंत्र की तरह काम कर रहा है और वहां की सरकार किसी काम की नहीं। सेना की कठपुतली बन चुकी नवाज शरीफ सरकार विदेश और रक्षा नीति के मामले में तो बिलकुल ही नाकारा है। विडंबना यह है कि इस स्थिति के बावजूद रह-रह कर यह उम्मीद की जाने लगती है कि पाकिस्तान सही रास्ते पर आ जाएगा और बातचीत से उससे संबंध सुधर सकते हैं। यह उम्मीद ही समस्या की जड़ है और इसी कारण पाकिस्तान के हाथों बार-बार धोखा खाना पड़ता है।
जरूरत केवल इसकी नहीं है कि पाकिस्तान संबंधी नीति में बदलाव लाया जाए, बल्कि इसकी भी है कि कश्मीर के हालात को लेकर भी कोई नई रणनीति बनाई जाए। यह इसलिए, क्योंकि कश्मीर घाटी में स्थितियां दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही हैं। गत दिवस ही दक्षिणी कश्मीर के कुलगाम में आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर बैंक की कैश वैन पर हमला कर जिस तरह बैंक के दो सुरक्षा कर्मियों के साथ पांच पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी उससे यही पता चल रहा कि वे पुलिस को निशाना बनाने पर तुल गए हैं। यह घटना आतंकियों के खतरनाक होते इरादों को ही प्रकट कर रही है। अगर वे पुलिस वालों को निशाना बनने लगे तो फिर कश्मीर के हालात और खराब होने तय हैं। जम्मू-कश्मीर में सीमा परऔर सीमा के अंदर के हालात के लिए पाकिस्तानी सेना को जिम्मेदार ठहराने अथवा उसे कोसते रहने से कुछ नहीं होने वाला। भारत को सीमा पार की आतंकी ताकतों को सख्त संदेश देना होगा और यह काम तभी संभव है जब पाकिस्तान के संदर्भ में पुरानी रीति-नीति का परित्याग किया जाएगा। नई रीति-नीति अपनाते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि सीधी उंगली से घी नहीं निकलता। बेहतर होगा कि भारत पाकिस्तान से कोई सवाल-जवाब करने के बजाय उसे न भूलने वाला सबक सिखाने पर अपना ध्यान केंद्रित करे।

[  मुख्य संपादकीय  ]