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अभियान बनाम मजाक

By Edited By: Published: Wed, 17 Oct 2012 03:34 AM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2012 03:37 AM (IST)
अभियान बनाम मजाक

राज्य सूचना आयोग के गठन के बाद कार्यप्रभार और नेटवर्क विस्तार की दिशा में सरकार की घोर उदासीनता वास्तव में चिंतनीय है। वन मैन आर्मी की तरह राज्य सूचना आयुक्त के पद पर नियुक्ति मात्र से ही यदि सरकार सूचना का अधिकार लागू करने के अपने उद्देश्य को पूरा मान रही है तो उसे अपने दृष्टिकोण पर पुनर्विचार करना चाहिए। सूचना के अधिकार से जन-जन को अवगत करवाने के लिए पिछले सात साल के दौरान मात्र पांच कार्यशालाएं आयोजित की गई जिन पर केवल ढाई लाख रुपये खर्च हुए। विडंबना देखिए कि राज्य सूचना आयुक्त को मासिक वेतन के नाम पर डेढ़ लाख रुपये का भुगतान किया जा रहा है। उनके कार्यालय के लैंडलाइन फोन का पांच महीने का बिल सूचना आयोग द्वारा प्रचार-प्रसार पर किए गए सालाना खर्च से अधिक है। आयुक्त की कार का पेट्रोल खर्च तो और भी अधिक है। सवाल यह है कि क्या केंद्रीय कानून लागू करने के लिए प्रदेश सरकार गंभीर है या सिर्फ कागजी खानापूर्ति की जा रही है? सूचना के अधिकार कानून ने कई मायनों में जागृति और आमजन में आत्मविश्वास की भावना जगाई है। कई चौंकाने वाले राज खुले, विभागीय गलियारों में आरटीई की गूंज सुनाई दी, लोगों का रुझान भी कुछ बढ़ा लेकिन अब यह आभास हो रहा है कि सात वर्ष पूर्व जो शुरुआती जोश था वह केवल औपचारिकता मात्र रह गया। आवेदनों की भरमार के बीच आधी-अधूरी सूचनाएं मिलने की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं। कभी-कभी आयोग रेफरल यूनिट के रूप में बदला दिखाई देने लगता है, कुछ-कुछ बाबूगीरी की संस्कृति पनपने से भी प्रक्रिया में अवरोध पैदा हो रहा है। कसावट न होने के कारण आरटीई के तहत जवाब न देने वालों पर कार्रवाई के मामले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। राज्य सरकार को स्थिति का समग्रता से अवलोकन करके तार्किकता के धरातल पर सूचना आयोग की सार्थकता साबित करनी होगी। आयोग के संपूर्ण ढांचे के परिप्रेक्ष्य में आयुक्त के वेतन व अन्य खर्चो को न्यायोचित सिद्ध करना होगा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि तीन वर्षो से राज्य सूचना आयोग सरकार को कोई रिपोर्ट नहीं भेज रहा, फिर सारी कवायद का औचित्य तो कोई बताए। आरटीई से संबंधित 122 विभाग भी कोई रिपोर्ट नहीं भेज रहे। आयोग की गतिविधियां तत्काल बढ़ाई जाए और उसकी सफेद हाथी की छवि बदलने की गंभीर कोशिश की जाए। वास्तविक संदर्भो में आरटीई लागू करने के लिए राज्य में आधारभूत स्तर पर काफी कुछ किए जाने की आवश्यकता है।

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[स्थानीय संपादकीय: हरियाणा]

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