दागियों के प्रति नरमी
यह हैरानीजनक है कि एक ही प्रकार का निर्देश अदालत द्वारा बार-बार जारी किए जाने के बावजूद पंजाब सरकार उस पर अमल में इतनी ढिलाई बरत रही है। अदालत ने काफी पहले राज्य सरकार को दागी पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया था किंतु सरकार ने अब तक अदालत को यह सूचित नहीं किया कि उनके विरुद्ध क्या कार्रवाई की गई। राज्य में 1398 पुलिसकर्मी ऐसे हैं जो किसी न किसी आरोप का सामना कर रहे हैं तथा दागी माने जा चुके हैं। जिस राज्य में इतनी बड़ी संख्या में दागी पुलिस कर्मचारी होंगे उसमें कानून-व्यवस्था की स्थिति क्या होगी इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। प्रदेश में अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। यह अलग बात है कि सरकार इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं है और पुलिस अपने पक्ष में तमाम तरह के आंकड़े प्रस्तुत करती है। धरातल की सच्चाई तो यह है कि दागी पुलिसकर्मियों के कारण ही अपराध भी होते हैं। उनका चरित्र अच्छा नहीं होता है और वे प्राय: क्षुद्र लालच में आकर अपराधियों को संरक्षण देने लगते हैं। अपराधी भी जब यह देखते हैं कि पुलिस वाला भी उतना ही भ्रष्ट अथवा अपराध में संलिप्त है जितना कि वे स्वयं हैं तो उनका दुस्साहस भी बढ़ जाता है। समाज में जब पुलिसकर्मी आपराधिक मानसिकता वाले होंगे तो किसी का भरोसा भी पुलिस पर कैसे होगा? यही कारण है कि लोग अपराधियों से टक्कर लेने की बजाय उनके समक्ष समर्पण कर देने में भलाई समझते हैं क्योंकि वे समझते हैं कि उनकी सुनवाई पुलिस भी नहीं करेगी। देखा जाए तो संरक्षणवाद की यह बेल ऊपर से नीचे तक फैली हुई है। राजनेता ऐसे अधिकारियों को संरक्षण देते हैं जो दागी होते हैं और दागी अधिकारी अपराधियों को संरक्षण देते हैं। अपराधी सरेआम अपराध करते हैं और पुलिस उन्हें पकड़ भी नहीं पाती है। सरकार को चाहिए कि वह संरक्षणवाद की इस गलत परंपरा को तोड़े तथा जो भी दागी हैं उन्हें उनके पदों से हटाए। एक भयमुक्त शासन स्थापित करने की दिशा में यह पहला कदम है।
[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]
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