Move to Jagran APP

लोकपाल की तैयारी

By Edited By: Published: Fri, 09 Dec 2011 12:54 AM (IST)Updated: Fri, 09 Dec 2011 01:08 AM (IST)
लोकपाल की तैयारी

संसदीय समिति के आधे सदस्यों ने लोकपाल रपट से असहमति जताकर यह साफ कर दिया कि संसद में इस रपट को लेकर आम राय कायम करने में मुश्किल आ सकती है। यदि इस मुश्किल के चलते लोकपाल विधेयक पारित नहीं हो पाता तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नहीं हो सकता। देश की जनता लोकपाल व्यवस्था के निर्माण में और अधिक देरी सहन के लिए तैयार नहीं होगी। बेहतर हो कि राजनीतिक दल और विशेष रूप से सत्तारूढ़ दल यह समझें कि इस मुद्दे पर आम जनता के धैर्य की परीक्षा नहीं ली जा सकती। राजनीतिक दलों को यह भी ध्यान रखना होगा कि जनता आधे-अधूरे लोकपाल के लिए तैयार नहीं होगी। इसका कोई औचित्य नहीं कि चार दशक के इंतजार के बाद लोकपाल व्यवस्था बने और वह भी आधी-अधूरी। यह शुभ संकेत नहीं कि लोकपाल संबंधी संसदीय समिति के अध्यक्ष टीम अन्ना को यह सलाह दे रहे हैं कि उसे एक-दो वर्ष रुककर लोकपाल की क्षमता देखनी चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय समिति हर किसी को संतुष्ट करने के लिए नहीं थी। एक सीमा तक उनका तर्क सही है, लेकिन आखिर ग्रुप-सी के कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का क्या औचित्य? क्या ऐसा करना संसद की भावना के विपरीत नहीं? क्या संसदीय समिति संसद से बड़ी हो सकती है? संसदीय समिति ने जनता की अपेक्षा के अनुरूप न तो केंद्रीय सतर्कता आयोग को लोकपाल के प्रति जवाबदेह बनाने की सिफारिश की और न ही सीबीआइ को सरकार के दबाव से मुक्त करने की। इस पर आश्चर्य नहीं कि लोकपाल के प्रस्तावित मसौदे से टीम अन्ना नाखुश है। संसदीय समिति के सभी विपक्षी सदस्यों के साथ-साथ जिस तरह सत्तापक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस के तीन सदस्यों ने ग्रुप-सी के कर्मियों और सीवीसी के मामले में अपनी असहमति दर्ज कराई उससे सरकार को आम जनता के मूड-मिजाज का अनुमान लगा लेना चाहिए।

loksabha election banner

यह स्वागतयोग्य है कि कांग्रेस के तीन सांसदों ने जनता की भावनाओं को समझते हुए ग्रुप-सी के कर्मियों को लोकपाल के दायरे में लाना जरूरी समझा। यह विचित्र है कि संसदीय समिति यह सामान्य सी बात क्यों नहीं समझ सकी कि आम तौर पर सामान्य जनता का पाला तो ग्रुप-सी के कर्मियों से ही पड़ता है? यदि लोकपाल आम जनता को कोई राहत नहीं दे सकता तो फिर उसके साकार होने का कोई मतलब नहीं। चूंकि लोकपाल पर संसदीय समिति की रपट संसद में जाने के पहले कैबिनेट के सामने से गुजरेगी इसलिए उचित यह होगा कि ऐसी पहल की जाए जिससे संसद में ज्यादा तर्क-वितर्क की गुंजाइश न रहे। सरकार को इस पर भी गौर करना होगा कि जब तक सीबीआइ उसके तहत काम करने के लिए विवश है तब तक न तो उसकी साख बढ़ने वाली है और न ही इस जांच एजेंसी की। सीबीआइ पर एक कठपुतली जांच एजेंसी का ठप्पा इसीलिए लगा है, क्योंकि उसकी स्वायत्तता दिखावटी है। सच्चाई यह है कि सीबीआइ सरकार का हुक्म बजाने के लिए बाध्य है। विडंबना यह है कि सीबीआइ अपनी गुलामी को ही स्वायत्तता मानकर इस बात से बेचैन है कि कहीं उसे लोकपाल के दायरे में न आना पड़े। इस बेचैनी का कोई मूल्य-महत्व नहीं। जो भी हो, यदि सरकार चाहे तो लोकपाल पर संसदीय समिति के अधूरे काम को आसानी से पूरा कर सकती है।

[मुख्य संपादकीय]

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.