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सियासत की रेल

By Edited By: Published: Mon, 07 Nov 2011 12:06 AM (IST)Updated: Mon, 07 Nov 2011 12:08 AM (IST)
सियासत की रेल

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों को रेल लाइन से जोड़ने की मांग दशकों से उठती रही है और अब यह जल्द अंजाम तक पहुंचने जा रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी नौ नवंबर को चमोली जिले के गौचर में कर्णप्रयाग-ऋषिकेश रेल लाइन निर्माण का शिलान्यास करेंगी। नौ नवंबर को ही अपनी स्थापना के ग्यारह साल पूरे करने जा रहे उत्तराखंड के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्ध है मगर जिस तरह से केंद्र में सत्तासीन संप्रग सरकार के मुख्य घटक कांग्रेस और राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा ने इसे राजनीति का मुद्दा बना दिया है, उससे पब्लिक में अच्छा संदेश नहीं जा रहा है। श्रेय की राजनीति के फेर ने इन दोनों दलों में चल रहे आरोप-प्रत्यारोप से साफ नजर आ रहा है कि इनके लिए जनता को हासिल होने जा रही सहूलियत के निजी राजनैतिक हितों के सामने कोई मायने नहीं हैं। कांग्रेस के नेता कह रहे हैं कि हमने तो 1995 में ही इस रेल लाइन का सर्वे करा डाला था, तो जवाब में भाजपाई यह कहकर ताल ठोकते नजर आते हैं कि संसद में पार्टी ने 1991 में ही इस रेलवे लाइन के संबंध में मांग उठा दी थी। साफ है, दोनों पार्टियों को सामने नजर आ रहे राज्य विधानसभा चुनाव और अगले लोकसभा चुनाव की चिंता सता रही है कि कहीं पहाड़ में रेल चढ़ाने का श्रेय दूसरा न लूट ले जाए। दिलचस्प बात यह है कि जिस रेलवे लाइन का श्रेय लेने की होड़ इन दोनों दलों में मची है, उसका पहला सर्वे लगभग 87 साल पहले 1924-26 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार करा चुकी थी। प्रथम विश्वयुद्ध में अदम्य वीरता दिखाने पर ब्रिटिश सरकार ने पहली गढ़वाल राइफल के सुबेदार दरबान सिंह नेगी को अपने सर्वोच्च सम्मान विक्टोरिया क्रॉस से नवाजा था और तब उनके आग्रह पर इस रेल लाइन का सर्वे कराया गया। हालांकि तब भारी भरकम खर्च के कारण यह रेल लाइन बन नहीं पाई। अब लगभग साढे़ आठ-नौ दशक बाद जब इस रेल लाइन निर्माण की शुरुआत का समय आया तो किसी को विक्टोरिया क्रॉस विजेता जांबाज दरबान सिंह नेगी की याद तक नहीं आई, बल्कि इसके उलट इस अहम मसले को दलीय राजनीति के चश्मे से देखा जा रहा है। यह रेल मार्ग अस्तित्व में आने पर इस पहाड़ी क्षेत्र के लिए कितना महत्वपूर्ण होगा, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि ऋषिकेश-कर्णप्रयाग की जो दूरी इस वक्त 176 किमी है, रेल लाइन बनने पर यह महज लगभग 125 किमी ही रह जाएगी। अभी सड़क मार्ग से लगते हैं लगभग आठ घंटे, जो रह जाएंगे बस चार घंटे। इससे पर्यटन व तीर्थाटन के लिहाज से आम आदमी को तो सुविधा मिलेगी ही, आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह उत्तराखंड के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

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[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]

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