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पिछड़ेपन पर सियासत

By Edited By: Published: Sun, 01 May 2011 10:07 PM (IST)Updated: Wed, 16 Nov 2011 04:44 PM (IST)
पिछड़ेपन पर सियासत

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बांदा में कांग्रेस की रैली के दौरान बुंदेलखंड के पिछड़ेपन के लिए जिस तरह उत्तर प्रदेश में गैर-कांग्रेस सरकारों को दोषी ठहराया उसमें एक हद तक ही सच्चाई है। यह समझ से परे है कि प्रधानमंत्री ने बुंदेलखंड के पिछड़ेपन के लिए अंग्रेजी शासन को किस आधार पर जिम्मेदार ठहरा दिया? क्या इसका यह मतलब नहीं कि जो इलाके अंग्रेजों के शासन के दौरान पिछड़े थे वे अभी तक पिछड़े बने हुए हैं? जो भी हो, यह दलील शायद ही किसी के गले उतरे कि बुंदेलखंड के पिछडे़पन के लिए उत्तर प्रदेश की गैर-कांग्रेसी सरकारें और अंग्रेजों का शासन जिम्मेदार है। अगर यह मान भी लिया जाए कि बुंदेलखंड का इलाका इसलिए पिछड़ा हुआ है, क्योंकि अंग्रेजों ने उसका विकास नहीं होने दिया तो भी यह सवाल तो उठेगा ही कि आजादी के बाद चालीस वर्षो तक सत्ता में रहते हुए कांग्रेस ने इस क्षेत्र के विकास के लिए आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाए? कांग्रेस को यह अच्छी तरह पता होना ही चाहिए कि बुंदेलखंड का पिछड़ापन पिछले दो दशकों की ही कहानी नहीं है। यह इलाका आजादी के बाद से ही पिछड़ेपन से त्रस्त है और इसके लिए कांग्रेस भी उतनी ही जिम्मेदार है जितना कि उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहा कोई अन्य दल।

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बुंदेलखंड रैली के दौरान प्रधानमंत्री ने इस क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति के लिए दो सौ करोड़ रुपये देने की जो घोषणा की उससे बात बनने वाली नहीं है। यह इलाका निश्चित रूप से पेयजल की किल्लत का सामना कर रहा है, लेकिन इस किल्लत को दूर करने के लिए 200 करोड़ रुपये की राशि आवंटित करने से बात इसलिए नहीं बनने वाली, क्योंकि यह विस्मृत नहीं किया जा सकता कि इंदिरा गांधी ने अपने शासनकाल में इस क्षेत्र में पेयजल की जिस परियोजना की शुरुआत की थी वह अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। बुंदेलखंड का विकास तो तभी संभव है जब इसके लिए केंद्रीय सत्ता और राज्य सरकार एकमत होंगी। फिलहाल इसके संकेत नजर नहीं आते, क्योंकि प्रधानमंत्री की रैली के तत्काल बाद राज्य सरकार ने यह सफाई देने में देर नहीं लगाई कि वह बुंदेलखंड के विकास के लिए गंभीर है, लेकिन केंद्र सरकार उसे सहयोग नहीं दे रही है।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तरप्रदेश]

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