आज देश के लिए नक्सली या माओवादी सिर दर्द बने हुए हैं। आए दिन सुरक्षा बलों के खून से माओवादी अपना हाथ रंग रहे हैं, वहीं सुरक्षा बलों की गोली से खुद भी मारे जा रहे हैं। आज ही के दिन 50 वर्ष पूर्व 25 मई 1967 को बंगाल के दार्जिलिंग जिले के एक छोटे से गांव नक्सलबाड़ी से सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत हुई थी। किसानों को उनका हक दिलाने के लिए जिस आंदोलन की शुरुआत हुई थी, अब वहां उसके निशां भी नहीं है। उस अनजाने से गांव से पचास साल पहले आंदोलन की एक ऐसी मशाल जली, जो देश के कई राज्यों तक पहुंच गई। यह आंदोलन ऐसा था जो गांव के नाम पर भी आज भी जाना जाता है। हालांकि, अन्य राज्यों में तो अब भी माओवादियों का सशस्त्र आंदोलन जारी है, लेकिन बंगाल में इस पर विराम लग चुका है। आज भी नक्सलबाड़ी विकास से कोसों दूर है। सात साल पहले नक्सल आंदोलन के अगुवा कहे जाने वाले कानू सान्याल की मौत के बाद अब गरीबों और वंचितों के हक में कोई आवाज नहीं उठाता। बचे हुए नक्सली कई गुटों में बंट चुके हैं। आंदोलन की बरसी पर नक्सल आंदोलन में मारे गए लोगों की वेदी पर माला चढ़ा कर ही वे लोग इस आंदोलन को याद कर लेते हैं। इस आंदोलन से प्रोत्साहित होकर देश के विभिन्न हिस्सों में न जाने कितने ही आंदोलन हुए, लेकिन नक्सलबाड़ी में अब नक्सल शब्द का कोई नामलेवा नहीं है, जो आंदोलन भूमिहीनों के हितों की रक्षा के लिए शुरू हुआ था, आज भटक कर उग्र्रवाद बन चुका है, जिसे अब देशद्रोह माना जा रहा है। हालांकि, आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जिनका मानना है कि नक्सलबाड़ी आंदोलन नहीं होता तो देश से जमींदारी प्रथा का अंत नहीं हुआ होता। पर, सवाल यही है कि क्या उस आंदोलन से किसानों को उनका हक मिला? शायद नहीं। अगर ऐसा होता तो आज भी किसान खुदकुशी नहीं कर रहे होते। वैसे तो नक्सल आंदोलन से पहले 1940 के दशक में किसानों ने तेलंगाना और तेभागा आंदोलन किया था। उन आंदोलनों ने पूरे देश को हिला दिया था। तेलंगाना आंदोलन आंध्र प्रदेश में किसानों और मजदूरों की पहली क्रांति थी। उसी समय बंगाल के किसानों ने अपने हक के लिए तेभागा आंदोलन शुरू किया था। उसके बाद से ही राज्य के चाय बागान इलाकों में मजदूर असंतोष बढ़ा और 1967 में सशस्त्र नक्सल आंदोलन शुरू हुआ।
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(हाईलाइटर::: सवाल यही है कि क्या उस आंदोलन से किसानों को उनका हक मिला? शायद नहीं। अगर ऐसा होता तो आज भी किसान खुदकुशी नहीं कर रहे होते।)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]