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विधायकों को नसीहत

अपनी संघीय संसदीय शासन व्यवस्था की दूसरी किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी राज्य विधान मंडल के सदस्य संवेद

By Edited By: Published: Mon, 06 Jul 2015 04:05 AM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2015 04:05 AM (IST)
विधायकों को नसीहत

अपनी संघीय संसदीय शासन व्यवस्था की दूसरी किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण कड़ी राज्य विधान मंडल के सदस्य संवेदनशील हों और जनता, विधानसभा तथा सरकार के बीच कड़ी का काम करें तो जन सामान्य को जितना फायदा होगा, उससे अधिक भला खुद उनका ही होगा। संसदीय प्रणाली : सिद्धांत एवं व्यवहार विषयक कार्यशाला में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के वक्तव्य का यह सार-संक्षेप निश्चय ही वह सब कह गया, जिसके लिए जनता अपना विधायक चुनती है। यह कुछ वैसी ही बात है कि जगे हुए को नहीं जगाया जा सकता। चुनाव के समय प्रत्याशी या उनके राजनीतिक दल जो कुछ कहते हैं, केवल उतना भी करें तो एक सुदृढ़ प्रणाली विकसित हो जाए। वे चूंकि ये बातें उपेक्षित कर जाते हैं, इसीलिए आधे से अधिक अगले चुनाव में नकार दिए जाते रहे हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने एकदम सटीक बात कही कि जनता सब समझती है। जनप्रतिनिधि संवेदनशील रहते तो यह आईना दिखाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। राजनीति एक ऐसा सेवा क्षेत्र है, जिसमें भटकाव की गुंजाइश बहुत रहती है। दुर्भाग्य से झारखंड में इस भटकाव की गति बहुत तेज है। अपनी स्थापना का 15वां वर्ष पूरा करने जा रहे झारखंड में विधानसभा की ओर से पहली बार इस तरह का आयोजन हुआ, जिसमें संसदीय प्रणाली के विशेषज्ञ अपनी बातें रख रहे हैं, लेकिन अपने विधायकगण इसके प्रति कितने उत्सुक हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि 81 विधायकों में से 48 ने ही इसमें शिरकत की।

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जैसा कि इस कार्यशाला में संदेश उभर कर आया, विधायक यदि अपना कान जनता की तरफ रखकर ध्यान विकास की ओर दें तो उनकी विश्वसनीयता बढ़ेगी। राजनीति में विश्वसनीयता ही असल पूंजी होती है। संसदीय व्यवस्था का यह गणित इस बात पर निर्भर करता है कि विधायकगण इस प्रणाली के कितने जानकार हैं। इसके विपरीत सदन में किसी मुद्दे को लेकर हल्ला-हंगामा करने वाले तात्कालिक तौर पर भले ही चर्चा में रहें, किंतु इसका उनको कोई दूरगामी परिणाम नहीं हासिल होता। अलबत्ता, गलत संदेश जरूर चला जाता है। विरोध के लिए विरोध के बजाय उपलब्ध संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कराने के गुर जो विधायक जानते हैं, वे हर जगह मर्यादित रहते हैं। सिद्धांत और व्यवहार के बीच समन्वय बनाना भी संसदीय कार्यो का हिस्सा है, क्योंकि सारा कार्य-व्यापार लिखित पर ही नहीं चलता।

[स्थानीय संपादकीय: झारखंड]


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