बेकाबू बिजली संकट
उत्तराखंड में बिजली संकट के बेकाबू हालात आमजन पर दोहरी मार कर रहे हैं। पारा चालीस डिग्री सेल्सियस तक
उत्तराखंड में बिजली संकट के बेकाबू हालात आमजन पर दोहरी मार कर रहे हैं। पारा चालीस डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है और जनता घंटों बिजली कटौती से जूझने को मजबूर है। विद्युत आपूर्ति की इस अनिश्चितता ने पेयजल वितरण की व्यवस्था को भी पटरी से उतार दिया है। गर्मी से परेशान व प्यासी जनता को ऐसे हालात में सड़कों पर उतरना पड़ रहा है। दरअसल, ऊर्जा प्रदेश में बिजली का यह संकट अचानक खड़ा नहीं हुआ है। प्रदेश सरकार और उसके जिम्मेदार महकमों की लापरवाही व कुप्रबंधन खराब होते हालात के लिए उत्तरदायी नजर आ रहे हैं। गर्मी से पहले विद्युत वितरण नेटवर्क दुरुस्त करने का मामला हो या फिर बढ़ती विद्युत खपत के मुताबिक पहले से ठोस इंतजाम करने का मसला, राज्य की विद्युत वितरण कंपनी ऊर्जा निगम की तैयारियां दोनों ही मामले में नाकाफी साबित हो रही हैं। इसमें दो राय नहीं कि प्रदेश में बढ़ती विद्युत खपत के अनुरूप बिजली उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही। इसकी प्रमुख वजह यह है कि राज्य की कई महत्वाकांक्षी व बड़ी पनबिजली परियोजनाएं पर्यावरणीय कारणों से अधर में लटक गई हैं, मगर इसके बावजूद जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में बरती जा रही लेटलतीफी से भी इनकार नहीं किया जा सकता। राज्य गठन के शुरुआती कुछ वर्षो में उत्तराखंड जहां सरप्लस एनर्जी स्टेट की फेहरिस्त में अपनी जगह बना चुका था, वहीं अब अन्य राज्यों से महंगी दरों पर बिजली खरीदने के बाद भी बिजली संकट से निजात नहीं मिल पा रही। पिछले 14 वर्ष में 304 मेगावाट की मनेरी भाली-दो परियोजना को छोड़कर किसी दूसरी बड़ी परियोजना का निर्माण पूरा नहीं हो सका। हाल में राज्य सरकार ने टौंस नदी पर प्रस्तावित 660 मेगावाट की किसाऊ बांध परियोजना के डाउनस्ट्रीम की अपनी पांच परियोजनाओं के उत्पादन वृद्धि में हिमाचल को बराबर हिस्सेदारी देने पर सहमति दे दी। जाहिर है आने वाले वर्षो में उत्तराखंड को सरकार के इस फैसले का खामियाजा भी भुगतना होगा। दूसरी ओर, टिहरी बांध परियोजना में उत्तराखंड को 25 फीसद हिस्सेदारी के दावे के संबंध में चल रहा विवाद सुलझाने में भी राज्य सरकार अब तक कामयाब नहीं हो पाई। पर्यावरण संरक्षण को लेकर केंद्र सरकार के सख्त नियम-कायदों ने जलविद्युत परियोजनाओं पर तलवार लटका दी है, मगर ऐसी स्थिति में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोत विकसित करने की दिशा में भी राज्य सरकार कोई कारगर रणनीति व कार्ययोजना तैयार नहीं कर पाई है। जाहिर है, गहराते बिजली संकट के बीच राज्य सरकार को इन तमाम पहलुओं पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। बिजली निगमों की कार्यप्रणाली सुधारने के साथ वैकल्पिक रणनीति भी समय रहते तैयार करनी होगी।
[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]