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राग वृहद झारखंड

झामुमो ने एक बार फिर वृहद झारखंड राज्य का शिगूफा छोड़ा है। अपने दसवें अधिवेशन में उसने पश्चिम बंगाल औ

By Edited By: Published: Sun, 19 Apr 2015 06:24 AM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2015 06:24 AM (IST)
राग वृहद झारखंड

झामुमो ने एक बार फिर वृहद झारखंड राज्य का शिगूफा छोड़ा है। अपने दसवें अधिवेशन में उसने पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ सीमावर्ती जिलों को झारखंड में मिलाने की मांग उठाकर खुद को राज्य का बड़ा हितैषी बताने की कोशिश की है। इस राज्य की राजनीति के लटके-झटके ही कुछ अलग हैं। जब राजनीतिक दल सत्ता में होते हैं तो कुर्सी बचाओ अभियान, तबादला-पदस्थापन और कुछ अन्य 'विशेष कार्यो' के अलावा बाकी बातें उनके ध्यान में नहीं आतीं। जैसे ही सत्ता उनके हाथ से जाती है, संपूर्ण झारखंड का हित, जल-जंगल-जमीन, कानून-व्यवस्था, विकास आदि-आदि सब नजर आने लगते हैं। उनको विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का भी सपना आने लगता है। चौदह वर्षो से चला आ रहा यह सिलसिला अब झारखंडियों को उद्वेलित नहीं करता। राजनीतिक दलों को कुछ और टोटके आजमाने चाहिए। झामुमो ने बेशक झारखंड अलग राज्य के लिए आंदोलन किया, लेकिन जब इसका गठन हो रहा था, उस समय उसने वृहद राज्य का दबाव नहीं बनाया। इसके बाद वह चार बार प्रत्यक्ष रूप से सत्ता में रहा, तब भी उसको यह याद नहीं आया। अब जबकि एनडीए बहुमत में आकर शासन चला रहा है और झामुमो प्रत्यक्षत: पांच वर्षो के लिए सत्ता से बाहर हो चुका है तो उसको वृहद झारखंड की चिंता सताने लगी है।

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चार महीने पहले तक, जब झामुमो सत्ता में था और आजसू प्रतिपक्ष की भूमिका में थी, तो इसी प्रकार उसको विशेष राज्य की चिंता सताती थी। रांची से लेकर दिल्ली तक वह विशेष राज्य की मांग का ढोल पीटती घूम रही थी। अब वह पुन: सत्ता का अंग बन गई है और उसके प्रमुख पार्टनर का ही केंद्र में शासन है तो उसके दिलोदिमाग से विशेष राज्य का भूत उतर चुका है। यह इकलौता राज्य है, जिस पर चौदह वर्षो में ही हर संभावित राजनीतिक दल ने किसी न किसी रूप में शासन किया, लेकिन जनता का विश्वास कोई नहीं अर्जित कर सका। स्वयं को माटी का लाल बताने वाले दलों की भूमिका भी हमेशा समीक्षा और विश्लेषण का पात्र बनी रही। इसी कारण आज तक किसी भी एक दल को जनता ने सत्ता की प्रत्यक्ष कुंजी नहीं सौंपी। जब छोटा राज्य ही संभाले नहीं संभल रहा तो इसमें पड़ोसी गरीब और पिछड़े जिलों को शामिल कर कौन सा कमाल कर दिया जाएगा, यह वृहद राज्य की मांग करने वाले ही समझते होंगे। वर्तमान भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों का दर्द दूर कर दायें-बायें हाथ मारने का प्रयास होता तो लोग विश्वास भी कर लेते।

[स्थानीय संपादकीय: झारखंड]


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