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आतंक के साए में वोट

कोलकाता नगरनिगम चुनाव में आतंक फैला कर बूथ दखल करने की जो आशंका थी वह शनिवार को मतदान के दौरान जगह-ज

By Edited By: Published: Sun, 19 Apr 2015 06:24 AM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2015 06:24 AM (IST)
आतंक के साए में वोट

कोलकाता नगरनिगम चुनाव में आतंक फैला कर बूथ दखल करने की जो आशंका थी वह शनिवार को मतदान के दौरान जगह-जगह हुई हिंसा से अंतत: सच साबित हुई। मतदान के दौरान शुरू से लेकर तक अंत तक महानगर के विभिन्न वार्डो में हिंसा की घटनाएं घटती रही। अधिकांश जगहों पर विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं को मारने-पिटने से लेकर उम्मीदवारों व पोलिंग एजेंटों पर हमले तक हुए। राजभवन के सामने बमबाजी हुई जिसमें तीन लोग जख्मी हो गए। पार्क स्ट्रीट से सटे पॉश इलाके में माकपा नेता फूयाद हकीम को लक्ष्य कर गोली चलाई गई। बमबाजी, फायरिंग और गड़बड़ी फैला कर बूथ लूटने का आरोप सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस पर लगा है। तृणमूल कांग्रेस समर्थकों ने महानगर के कई वाडरें में संवाद माध्यम के प्रतिनिधियों को भी धमकी दी और उनके काम में बाधा डालने का प्रयास किया।

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ऐसा लग रहा था कि मतदान के दिन आतंक फैलाने का ब्लूप्रिंट पहले ही तैयार था। दो दिन पहले ही घटी दो हिंसक घटनाओं से इसके संकेत भी मिले थे। काशीपुर में तृणमूल कांग्रेस के दो गुटों के बीच हिंसक संघर्ष से आस-पास के क्षेत्रों में आतंक फैला और मतदान के दिन भी वहां तनाव व्याप्त था। कोलकाता से सटे हावड़ा के शालीमार में पुलिस की उपस्थिति में जिस तरह कुछ वाहनों को आग के हवाले किया गया उससे भी दहशत का माहौल बना। साथ ही महानगर में बाहरी असामाजिक तत्वों का प्रवेश हुआ। मतदान के दिन महानगर में जहां तहां हिंसक वारदात को अंजाम देने, गड़बड़ी फैलाने और बूथ लूटने में बाहरी असामाजिक तत्वों की ही प्रभावी भूमिका होने की बात कही जा रही है। मतदान के दौरान बेनियापुकुर में थाना के सामने ही बमबाजी व फायरिंग हुई। बड़ाबाजार, राजाबाजार और खिदिरपुर आदि क्षेत्रों में मतदान के दौरान बमबाजी की घटनाएं घटी। हिंसक घटनाओं में पुलिस स्थिति को नियंत्रित करने में असहाय दिखी। सवाल उठता है कि मतदान के पूर्व ही जब हिंसा की घटनाएं शुरू हुई तो राज्य चुनाव आयोग ने पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं की?

राज्य चुनाव आयोग ने निकाय चुनाव में मतदाताओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय बल की 150 कंपनियां तैनात करने की मांग की थी लेकिन चुनाव के लिए पर्याप्त केंद्रीय बल नहीं मिले। सरकार ने पहाड़ में पहले से तैनात केंद्रीय बल की तीन कंपनियां हटा कर यहां चुनाव के लिए लाई। पर्याप्त केंद्रीय बल जब नहीं मिले तो राज्य चुनाव आयोग को सुरक्षा की वैकल्पिक व्यवस्था करनी चाहिए थी। सरकार ने राज्य पुलिस के साथ कोलकाता पुलिस के सैकड़ों सशस्त्र पुलिस बल उपलब्ध कराने का भरोसा राज्य चुनाव आयोग को दिया था। मतदान में गड़बड़ी के समय जिस तरह कोलकाता पुलिस कर्मी स्थिति को नियंत्रित करने में असहाय दिखे उससे तो यही साबित होता है कि चुनाव के लिए पर्याप्त पुलिस बल भी तैनात नहीं किए गए।

[स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल]


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