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छुट्टी की राजनीति

उत्तर प्रदेश सरकार महापुरुषों की जयंती और पुण्य तिथि के नाम पर छुट्टी का एलान कर राजनीति के साथ जाति

By Edited By: Published: Sun, 19 Apr 2015 06:24 AM (IST)Updated: Sun, 19 Apr 2015 06:24 AM (IST)
छुट्टी की राजनीति

उत्तर प्रदेश सरकार महापुरुषों की जयंती और पुण्य तिथि के नाम पर छुट्टी का एलान कर राजनीति के साथ जातिगत दांव भी साधने में जुटी है। जाट राजनीति में पैठ बनाने के लिए सरकार ने चौधरी चरण सिंह के जन्मदिन पर छुंट्टी की घोषणा की तो अति पिछड़े और राजपूतों में पैठ बढ़ाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के जन्मदिन पर भी अवकाश घोषित किया। वहीं सरकार ने महर्षि कश्यप और मुईनुद्दीन चिश्ती के जन्मदिन पर भी अवकाश की घोषणा की है। इतना ही नहीं अपने ही निर्णय को पलटते हुए समाजवादी पार्टी की सरकार ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस को भी सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। इस तरह इस वर्ष सार्वजनिक और निर्बधित अवकाशों की संख्या 54 हो गई है।

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प्रदेश में छुट्टी की राजनीति नई नहीं है। पार्टियां पहले भी इस प्रकार के निर्णय करती रही हैं, लेकिन लोकहित में काम करने वाली सरकारें शायद यह भूल गई हैं कि छुट्टी की इस राजनीति से लोक यानी जनता का कोई हित नहीं हो रहा। दुनिया के तमाम देशों में राष्ट्रीय उत्सवों में अवकाश के बजाय अतिरिक्त काम करने का चलन है। मंशा साफ है। लोग ज्यादा काम करके राष्ट्र निर्माण का संदेश देना चाहते हैं, लेकिन हमारे देश में ज्यादा छुंिट्टयां कर सरकारें कौन सा संदेश देना चाहती हैं यह समझ से परे है। बात शिक्षा की करें तो इन छुंिट्टयों से सबसे ज्यादा नुकसान पढ़ाई का होता है। सालभर में गर्मी और जाड़े के दिनों वैसे ही तमाम छुंिट्टयां होती हैं। इसके बाद सरकारी छुंिट्टयां निकाल दें तो छात्रों का कोर्स पूरा होना कठिन हो जाता है। विद्यालय प्रबंधन भी इससे पीड़ित रहते हैं। उन्हें कोर्स पूरा करा पाने में बड़ी असुविधा होती है पर वह सरकार के निर्णयों का विरोध भी तो नहीं कर सकते। सरकारी दफ्तरों का भी अजब हाल है। साल में लगभग चालीस फीसद दिनों में यहां छुंिट्टयां रहती हैं। ऐसी स्थिति में काम कब होगा। छुंिट्टयों की रेवड़ियां बांटने के बजाय सरकार को विकास पर ध्यान देना चाहिए। इस तरह की राजनीति के पीछे सरकार की मंशा असल मुद्दों से ध्यान हटाने की हो सकती है, पर उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि अब लोग जाति की राजनीति से ऊपर उठकर विकास की बात करना चाहते हैं। हाल के चुनाव इसके उदाहरण हैं। सरकार को इससे सीखना चाहिए।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]


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