नाकाम नियोजनालय
राज्य सरकार द्वारा विभिन्न जिलों में स्थापित नियोजनालयों की उपयोगिता पर सवाल इसलिए उठने लगे हैं, क्य
राज्य सरकार द्वारा विभिन्न जिलों में स्थापित नियोजनालयों की उपयोगिता पर सवाल इसलिए उठने लगे हैं, क्योंकि उनमें पंजीयन कराने पर बेरोजगारों को कोई खास लाभ या अवसर नहीं मिल पाता। इनकी स्थापना का विशेष उद्देश्य था। इनमें पंजीकरण कराने वाले बेरोजगारों को उनकी योग्यता के अनुसार बहालियों के लिए आमंत्रित किया जाता था। वह दौर लगभग समाप्त हो चुका है। सरकारी क्षेत्र में तृतीय श्रेणी और इससे ऊपर के संवर्ग की नौकरियों के लिए नियोजनालयों में पंजीकरण आवश्यक नहीं है। इसके लिए सीधी संयुक्त प्रतियोगिता परीक्षाएं होती हैं। चतुर्थ वर्गीय पदों पर नियुक्तियां हो नहीं रहीं। इसके समानांतर अब आउटसोर्सिग का दौर चल जाने के कारण भी नियोजनालयों की बहुत उपयोगिता रही नहीं। निजी कंपनियां अधिकारी संवर्ग के लिए किसी की मुखापेक्षी होती नहीं। वे पद विज्ञापित कर या फिर इंटरनेट अथवा निजी संपर्को के आधार पर बहाली संबंधी अपनी जरूरत पूरी कर लेती हैं। इन सारी कवायदों के बाद यदि कहीं कोई जगह बनती है, तभी नियोजनालयों की पूछ हो पाती है। यही कारण है कि इनमें पंजीकृत बेरोजगारों में से बमुश्किल दस फीसद को रोजगार के अवसर मिल पाते हैं।
हाल के वर्षो में राज्य सरकार द्वारा विभिन्न जिलों में रोजगार मेला या फिर बहुउद्देश्यीय मेले का आयोजन कर निजी क्षेत्र में नियोजन कराने के भी प्रयास किए गए हैं। वोट बैंक बढ़ाने का यह जरिया माना जाता है, लेकिन वहां भी अपेक्षित रोजगार की व्यवस्था नहीं हो पाती। हर जगह कम खर्च में अधिक उत्पादकता का सृजन करने की परिपाटी चल निकली है। बेरोजगारी के इस दौर में पूर्व से नियोजित व्यक्ति अपनी सामर्थ्य से अधिक काम करने को विवश है। मानव संसाधन पर किया जाने वाला खर्च नियोजकों को अखरने लगा है। सरकारी क्षेत्र भी इसी राह पर चल रहे हैं। ऐसी स्थिति में नियोजनालयों पर किया जा रहा भारी-भरकम खर्च सरकार के लिए कितना सार्थक और उपयोगी है, इसकी उसे समीक्षा करनी चाहिए। नियोजनालयों में पदस्थापित अधिकारी और कर्मचारी भी अन्य स्थलों पर सेवारत अपने संवर्ग के लोगों के समान ही वेतन-भत्ते पाते हैं, जबकि स्थापना संबंधी अन्य मदों में भी व्यय होता ही है। राज्य में व्याप्त जबर्दस्त बेरोजगारी का निदान ढूंढने में ये केंद्र मददगार साबित हो सकते हैं, बशर्ते सरकार इनको उपयोगी बनाए। यह दायित्व उसका ही है कि वह अपनी किसी भी स्थापना का कितना दोहन कर पाती है।
[स्थानीय संपादकीय: झारखंड]