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देर आयद-दुरुस्त आयद

जैव विविधता के लिए मशहूर 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुके मानव-वन्

By Edited By: Published: Fri, 06 Mar 2015 05:10 AM (IST)Updated: Fri, 06 Mar 2015 05:10 AM (IST)
देर आयद-दुरुस्त आयद

जैव विविधता के लिए मशहूर 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में चिंताजनक स्थिति में पहुंच चुके मानव-वन्यजीव संघर्ष को थामने के लिए राज्य सरकार अब कुछ चिंतित दिखाई पड़ रही है। इस कड़ी में प्रारंभ की गई मुख्यमंत्री खेती सुरक्षा योजना के लिए राज्य के बजट में प्रावधान की उम्मीद जताई जा रही है तो मानव और वन्यजीव दोनों की सुरक्षा के मद्देनजर बड़ी योजना को आकार देने की तैयारी है। यह कदम राज्य गठन के बाद ही उठाए जाने चाहिएं थे, लेकिन समस्या को समझने में सरकार को 14 साल का अर्सा लग गया। खैर! देर आयद-दुरुस्त आयद। असल में समग्र रूप में देखें तो उत्तराखंड के बाशिंदे की पहली प्राथमिकता में आज भी जंगलों का संरक्षण है। वह भी तब जबकि यही जंगल उनके लिए खतरे का सबब बने हुए हैं। लेकिन, यहां के लोग वन एवं पर्यावरण के महत्व को समझते हैं, चाहे इसके लिए कितनी ही दुश्वारियां क्यों न झेलनी पड़ें। दुश्वारियों की ही बात करें तो राज्य गठन से लेकर अब तक 400 से ज्यादा लोग वन्यजीवों के हमले में जान गंवा चुके हैं, जबकि 900 से अधिक घायल हुए हैं। खेती तो पहाड़ हो या फिर मैदान दोनों ही जगह वन्यजीव चौपट कर रहे हैं। पर्वतीय इलाकों में सूअर, लंगूर, बंदर जैसे जानवरों ने नाक में दम किया हुआ है तो मैदानी क्षेत्रों में हाथी, नीलगाय, हिरण, सूअर जैसे वन्यजीव। पर्वतीय इलाकों में खेती से विमुखता और वहां से लगातार हो रहे पलायन के पीछे एक बड़ी वजह वन्यजीव भी हैं। फिर वन और विकास के बीच बेहतर सामंजस्य न होने का दंश भी राज्यवासी झेल रहे हैं। वन्यजीवों के हिसाब से देखें तो उनके वासस्थलों में खासा अतिक्रमण हुआ है। संरक्षित और आरक्षित क्षेत्रों में कहीं सड़क, रेल मार्गाें के साथ ही दूसरे कार्य वन्यजीवों के स्वछंद विचरण में बाधा बने हुए हैं तो कहीं जंगली जानवरों की भूमि पर मानव का कब्जा है। साफ है कि यदि मानव और वन्यजीवों के मध्य संघर्ष तेजी से बढ़ा है तो इसके पीछे मानवीय कारणों के साथ ही सरकारों का गैरजिम्मेदारना रवैया भी जिम्मेदार है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बाघ, हाथी, हिम तेंदुआ समेत दूसरे वन्यजीवों की वजह से उत्तराखंड को देश -दुनिया में अलग पहचान मिली है। लेकिन, मानव और वन्यजीव दोनों महफूज रहें, इसके लिए नीति बनाकर जरूरी कदम उठाना भी सरकारों का दायित्व है। इसी मोर्चे पर अब तक अनदेखी होती आई है। अब सरकार इस दिशा में कुछ सक्रिय हुई है। हाथी रोधी दीवार, सोलर फैन्सिंग, सुरक्षा खाई, कॉरीडोर खुलवाना समेत दूसरे कदम उठाने की बात कही जा रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार इस दिशा में अब गंभीरता से कदम उठाएगी, यदि ऐसा नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में स्थिति विकराल होते देर नहीं लगेगी।

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[स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड]


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