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रंग सद्भाव के

फागुन लगते ही तन-मन बौराने लगता है पर इस बार तो हर कहीं बौराहट है। बीते सप्ताह की ओर फिरकर देखें तो

By Edited By: Published: Fri, 06 Mar 2015 05:10 AM (IST)Updated: Fri, 06 Mar 2015 05:10 AM (IST)
रंग सद्भाव के

फागुन लगते ही तन-मन बौराने लगता है पर इस बार तो हर कहीं बौराहट है। बीते सप्ताह की ओर फिरकर देखें तो प्रकृति के चित्रों में कभी धानी तो कभी वासंती रंग रह रह कर उभर रहे हैं। कभी तलवार सी तीक्ष्णता लिये सूर्य रश्मियां चमचमाती प्रकट होती हैं तो कुछ ही देर में आसमान में छाती बदलियां उनका बलात् अपहरण कर उन्हें मानो पर्वतीय कंदराओं में छिपा आती हैं। कभी बौछारें होली खेलती दिखती हैं तो कभी सनसनाती हवाएं फगुआ सुनाती। प्रकृति अपने सम्पूर्ण आवेश में होली का संदेश गाती झूम रही है। संदेश विकारों के स्खलन और सद्भाव के अनावरण का। वो सद्भाव जो राग, द्वेष, स्वार्थ, लोलुपता की छींटों से दूषित होता है। फागुनी बौराहट इन्हीं विकारों के चरम का प्रतीक है जो होलिका दहन के साथ ही नष्ट हो जाता है। अलग-अलग अस्तित्व समेटे रंग बहुरंगी होकर एकता का संदेश देते हैं।

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उम्मीद है, ऐसी एकता इस होली भी प्रकट होगी। होली ऐसा पर्व है जिसमें वैयक्तिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उल्लास के रंग भरे पड़े हैं। भारत में होली हर जाति, वर्ण, धर्म और प्रांत का पर्व है। हम उत्तर प्रदेश के लोग स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सकते हैं कि सम्पूर्ण विश्व को एकता और सद्भाव का संदेश देने वाला यह पर्व हमारे यहां सबसे विराट स्वरूप में दृष्टिगोचर होता है। जीवन में रास-रंग का रस घोलने वाली ब्रज की होली हो या पूवरंचल और कानपुर की हुड़दंगी होली, या फिर मर्यादा व भाईचारे के रंग बिखेरती अवध की होली। होली के सामाजिक संदेश भी बेहद मुखर हैं। हुड़दंगी होली में विकारों से निवृत्ति मूल संदेश है तो ब्रज की होली प्रेम का संदेश देती है। अवध की होली धार्मिक वैमनस्यता से ऊपर उठने का संदेश देती है। यहां मुगल काल से लेकर नवाबियत के दौर तक होली एकता का संदेश बांटती रही है और आज भी उसका यह स्वर स्पष्ट है। जब चौक से होली का परंपरागत जुलूस ऊंट-हाथी-घोड़े और गाजे-बाजे के साथ निकलता है तो मजहबी आग्रह पीछे छूट जाते हैं और परस्पर भाईचारे का रंग हावी हो जाता है। अल्पसंख्यक समुदाय इस जुलूस पर केवड़े और खुशबू की बारिश करता है। ऐसे अनेक चित्र हर जिले में दिखते हैं। आपसी सद्भाव का यही स्वरूप होली की आधुनिक समाज को सबसे बड़ी देन है। आशा करनी चाहिए कि इस बार की होली भी कलुष के रंगों को धोकर सभी को सद्भाव के शिखर पर प्रतिष्ठित करेगी।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]


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