कठोर सजा जरूरी
सरकारी महकमों में लापरवाही, हीलाहवाली व घपले-घोटाले की खबरें लगातार सामने आना निस्संदेह चिंताजनक हैं
सरकारी महकमों में लापरवाही, हीलाहवाली व घपले-घोटाले की खबरें लगातार सामने आना निस्संदेह चिंताजनक हैं। हैरत की बात यह है कि ऐसे मामले दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं। पंजाब में गत दिवस भी ऐसे कई मामले सामने आए जिनमें सरकारी कर्मचारियों की ओर से लापरवाही व भ्रष्टाचार के मामले उजागर हुए। अमृतसर के ब्लाक जंडियाला में तैनात सीडीपीओ व उसके साथ कार्यरत वरिष्ठ सहायक को ड्यूटी में लापरवाही के कारण जुर्माने की सजा झेलनी पड़ी, वहीं पटियाला के राजपुरा में एक शराब फैक्ट्री से हो रही अवैध सप्लाई के मामले में मिलीभगत के आरोप में आबकारी एवं कर विभाग ने ईटीओ व दो इंस्पेक्टरों पर कार्रवाई की सिफारिश की। ऐसे मामलों में कदाचित जनप्रतिनिधि भी पीछे नहीं हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं जब जनप्रतिनिधियों ने अपनी शक्ति का उपयोग गलत कार्याें में किया। पटियाला में गत दिवस अदालत ने 16 साल पूर्व हुए खाद घोटाले में तीन दोषियों को कैद की सजा सुनाई। इसके अतिरिक्त पटियाला के चीफ इलेक्ट्रिकल इंस्पेक्टर को आय से अधिक संपत्ति के मामले में तीन साल की कैद व जुर्माने की सजा सुनाई गई। ये घटनाएं यह दर्शाती हैं कि कहीं न कहीं सरकारी कर्मचारी व जनप्रतिनिधि यह भूल गए हैं कि वे जनता के सेवक हैं। यही कारण है कि वे दोनों हाथों से जनता को लूटना अपना कर्तव्य समझने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकारी महकमों में कार्यरत सभी कर्मचारी भ्रष्ट हैं, परंतु मुट्ठी भर लालची कर्मचारियों की करतूतों के कारण जनता में ऐसी धारणा बन गई है कि प्रत्येक सरकारी कर्मचारी भ्रष्ट ही होगा। यह ठीक है कि सरकार इससे निपटने के उपाय कर रही है और राइट टू सर्विस एक्ट जैसे प्रावधान इसीलिए किए गए ताकि सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके, परंतु सच्चाई यही है कि इससे हालात में कुछ खास फर्क नहीं आया है। सरकार को इस एक्ट को और सख्ती से लागू करने के साथ ही भ्रष्ट कर्मियों के खिलाफ कठोर सजा का भी प्रावधान करना होगा, जुर्माने जैसी सजा से भ्रष्टाचार खत्म होने वाला नहीं है। सरकारी कर्मचारियों को भी चाहिए कि वे अपना आचरण सुधारें और अपने बीच मौजूद काली भेड़ों के खिलाफ मुखर हों तभी हालात में बदलाव संभव है।
[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]