Move to Jagran APP

पौधशाला में गरमी

राजनीति की पौधशाला सुलग रही है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में छात्र प्रतिनिधि और विश्वविद्या

By Edited By: Published: Sun, 23 Nov 2014 06:23 AM (IST)Updated: Sun, 23 Nov 2014 06:23 AM (IST)
पौधशाला में गरमी

राजनीति की पौधशाला सुलग रही है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में छात्र प्रतिनिधि और विश्वविद्यालय प्रशासन इस बात पर भिड़े हैं कि पौधशाला का आकार और स्वरूप क्या हो। एक पक्ष विश्वविद्यालय की ओर से नियत स्वरूप पर सहमत है तो दूसरा असहमत। आग्रह दुराग्रह में बदल रहे हैं। परिसर से लेकर सड़क तक गुट आपस में टकरा रहे हैं। लाठी-गोली गूंज रही है। महामना की तपस्थली में जो कुछ हो रहा है उसमें दो बातें स्पष्ट हैं। पहली यह कि छात्रों के शांतिपूर्ण आंदोलन को जो लोग उग्र रूप दे रहे हैं, वह छात्रों और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के हितैषी तो कतई नहीं हो सकते। इसलिए विश्वविद्यालय और जिला प्रशासन को इस पर तत्काल अंकुश लगाना चाहिए। ऐसा नहीं किया गया तो आंदोलन का यह स्वरूप अन्य विश्वविद्यालयों का माहौल भी दूषित कर सकता है। दूसरी बात यह है कि पूर्ण छात्र संघ और छात्र परिषद का जो विवाद है उसे लंबित नहीं रखा जा सकता। इसका स्थायी समाधान जरूरी है।

loksabha election banner

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पूर्ण छात्र संघ हो या लघु स्वरूप वाली छात्र परिषद, यह विवाद वर्ष 1997 से चल रहा है। तब भी आंदोलन ऐसा ही उग्र हो गया था और परिणाम निकला कि नौ साल तक यहां के छात्रों को अपना पक्ष रखने के लिए कोई लोकतांत्रिक मंच ही नहीं मिला। 2006 में छात्र परिषद शुरू हुई लेकिन चार सत्र तक ही यह सिलसिला चल सका। तब से फिर विवाद बना है। मौजूदा सत्र विश्वविद्यालय छात्र परिषद के चुनाव कराना चाह रहा है जबकि छात्रों का एक वर्ग छात्र संघ चाहता है। इसके लिए शांतिपूर्ण आंदोलन चल रहा था किंतु नामांकन प्रक्रिया के दौरान ही हिंसा भड़क उठी और चुनाव टाल दिये गए। जो कुछ हुआ वह इतिहास के दोहराव सरीखा है। यह सिर्फ काशी हिंदू विश्वविद्यालय तक सीमित मसला नहीं है। विश्वविद्यालयों अथवा महाविद्यालयों में छात्र राजनीति का क्या स्वरूप हो इस पर चर्चा काफी पुरानी है। इससे किसी को इन्कार नहीं कि शिक्षणालयों के आंगन में लोकतंत्र भी पुष्पित पल्लवित होना चाहिए किंतु हर बार उग्रता के कारण ही कोंपले झुलस जाती हैं। दुर्भाग्य से काशी हिंदू विश्वविद्यालय में जो परिस्थितियां बन रही हैं उसमें किसी सकारात्मक परिणाम की उम्मीद नजर नहीं आ रही। इस समय प्रदेश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में छात्र प्रतिनिधियों का मंच तैयार करने की प्रक्रिया चल रही है। बेहतर हो कि एक सर्वमान्य नीति पर सहमति बना ली जाए। इस पर सभी पक्षों को सिर जोड़कर सोचना चाहिए।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.