हथेली पर जान
राज्य में पहले की तुलना में सड़कों की हालत सुधरने से सफर आसान हुआ। इसका दूसरा पहलू बेहद चिंताजनक है।
राज्य में पहले की तुलना में सड़कों की हालत सुधरने से सफर आसान हुआ। इसका दूसरा पहलू बेहद चिंताजनक है। शायद ही ऐसा कोई दिन गुजरता है, जब दो-चार लोग सड़क हादसे के शिकार न होते हों। कभी-कभी तो यह संख्या दर्जन पार कर जाती है। इनमें वे लोग शामिल नहीं हैं, जो हादसे के कारण उम्र भर के लिए विकलांग हो जाते हैं। इन हादसों के लिए कुछ हद तक व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। राज्य में ड्राइविंग लाइसेंस का वितरण बड़ी लापरवाही से होता है। सरकार बेशक सख्ती का दावा करती रहे, लेकिन सच्चाई यह है कि डीटीओ दफ्तरों के आसपास आज भी दलालों का साम्राज्य कायम है। निश्चित रकम देने के बाद कोई भी आदमी ड्राइविंग लाइसेंस हासिल कर सकता है। अगर लाइसेंस देने में थोड़ी सख्ती बरती जाए तो ड्राइवरों की लापरवाही से होने वाले हादसे रोके जा सकते हैं। हादसे के बाद जिम्मेदारी का निर्धारण और जेल की सजा या आर्थिक दंड का प्रावधान इतना लचीला है कि वाहन चलाने वाले लोग न के बराबर कानून की फिक्र करते हैं। अधिसंख्य मामलों में तो दोषी ड्राइवर पकड़ में ही नहीं आता है। हादसे के बाद वह तेज रफ्तार से रफूचक्कर हो जाता है। कभी पकड़े जाने की नौबत आए तो गाड़ी छोड़कर फरार हो जाता है। घटना स्थल से ड्राइवर जिस सफाई से भाग जाता है, उस पर गौर करें तो यही बात स्थापित हो सकती है कि उसे वाहन चलाने का प्रशिक्षण भले ही नहीं मिला हो, लेकिन भागने के मामले में वह कुशल है। अकुशल ड्राइवरों को सिग्नल और गाड़ी की गति तक का ख्याल नहीं रहता है। हालिया दिनों में रफ्तार के चलते जान गंवाने वालों में नई पीढ़ी के लोग अधिक शामिल हो रहे हैं। वे आधुनिक बाइक पर सवार होकर लगभग जान हथेली पर रखकर सड़क पर उतरते हैं। कभी-कभी तो उनका गंतव्य भी तय नहीं रहता है। घर से निकले और तेज रफ्तार के चक्कर में फिर कभी वापस नहीं लौट पाए। देने के नाम पर ऐसे बच्चे या नौजवान मां-बाप को उम्र भर के लिए सदमा दे जाते हैं। यह कई स्तर पर हुए शोध से साबित हो गया है कि बाइक सवार अगर हेलमेट धारण करें तो हादसे के वक्त जान पर जोखिम कम रहता है, मगर हेलमेट पहन कर ड्राइविंग गवारा किसे है! लोग चेहरा न देखें तो बाइक पर होने वाले करतब को देखेगा कौन? शहरों में जब कभी सख्ती होती है तो लोग डर से हेलमेट पहन लेते हैं। पुलिस नजर से ओझल हुई नहीं कि उसे उतार देते हैं। जैसे हेलमेट का निर्माण सिर के लिए नहीं, पुलिस को धोखा देने के लिए किया गया हो! बहरहाल अच्छी बात यह है कि केंद्र सरकार सड़क हादसे को रोकने के लिए नया कानून बना रही है। यह राज्यों में भी लागू होगा। इस कानून के तहत गलत ड्राइविंग के लिए अर्थ दंड और जेल की सजा का प्रावधान किया जा रहा है। कानून के अमल में आने के बाद आज की तरह लापरवाही से गाड़ी चलाना संभव नहीं होगा। सवाल उठता है कि सुरक्षित यात्रा के लिए कड़े कानून का इंतजार क्यों किया जाए?
[स्थानीय संपादकीय: बिहार]