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बिजली पर बहस

प्रदेश में बिजली आपूर्ति व दरों पर चल रही रार अब व्यापक और सकारात्मक बहस का रूप ले रही है। उपभोक्ताओ

By Edited By: Published: Wed, 01 Oct 2014 05:10 AM (IST)Updated: Wed, 01 Oct 2014 05:10 AM (IST)
बिजली पर बहस

प्रदेश में बिजली आपूर्ति व दरों पर चल रही रार अब व्यापक और सकारात्मक बहस का रूप ले रही है। उपभोक्ताओं का बड़ा वर्ग पहले ही बिन बिजली व्याकुल है, तो दरों में वृद्धि की आशंका ने छटपटाहट और बढ़ा दी है। उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग भवन के शिलान्यास अवसर पर मंच से हुई चर्चा में यह छटपटाहट साफ महसूस की गई। मुख्यमंत्री मानते हैं कि वह बिजली समस्या से पीड़ित प्रदेशवासियों का दर्द समझते हैं। साथ ही जोड़ते हैं कि प्रदेश में बिजली कई राज्यों से सस्ती है। इशारा साफ है कि दरें बढ़ाए बिना काम नहीं चलेगा। दूसरी ओर राज्यपाल, नियामक आयोग और उपभोक्ता प्रतिनिधियों का मानना है कि दरें बढ़ाने के बजाए दूसरे उपायों पर काम होना चाहिए। एक तर्क यह है कि जितनी बिजली चोरी हो रही है, यदि उसका आधा भी रोक लिया जाए तो दरें बढ़ाने की जरूरत न पड़े। राज्यपाल उदाहरण देते हैं। केरल में लाइन लॉस 11.61 फीसद पर थाम लिया गया। महाराष्ट्र में यह 16.27 फीसद है। वहीं, उत्तर प्रदेश में लाइन हानि की दर 32.27 फीसद है। यह आंकड़ा दुरुस्त कर लिया जाए तो उपभोक्ताओं पर बोझ कम किया जा सकता है। विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष भी मानते हैं कि लाइन हानि रोकने और बिना कनेक्शन वाले उपभोक्ताओं को जोड़ने से बात बन सकती है। यही उपभोक्ताओं के प्रतिनिधि संगठन भी कहते हैं।

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दरअसल, लाइन हानि का गणित उपभोक्ताओं पर भले भारी पड़े पर सरकारों और अफसरों को काफी सुविधाजनक पड़ता है। यही कारण है, लाइन हानि के विश्लेषणात्मक आंकड़े सामने नहीं रखे जा रहे। आम धारणा है कि बिजली की बंदरबांट में लाइन हानि सबसे ज्यादा उन्हीं जिलों में है, जहां सबसे ज्यादा आपूर्ति है। सबसे ज्यादा आपूर्ति वहीं हो रही जहां के राजनेता सरकार पर ज्यादा प्रभाव रखते हैं। यह अकेले वर्तमान सरकार ही नहीं पूर्ववर्ती सरकारों की भी कार्यशैली रही है। सबसे ज्यादा बिजली चोरी भी यहीं होती है, जो लाइन हानि में एक घटक के रूप में मौजूद रहती है। मांग और आपूर्ति में अंतर और हर वर्ग की जरूरत होने के कारण प्रदेश में बिजली को हमेशा से ही वोट बैंक से जोड़कर देखा जाता रहा है। यह बिजली चोरी ही है जो लाइन हानि की दर बढ़ाने के साथ उपभोक्ताओं के लिए उपयोग की दरें बढ़ाने का भी कारण बनती है। इस पर अब जिस तरह खुलकर चर्चा शुरू हुई है, वह सकारात्मक संकेत है।

[स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश]


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