पहाड़ की छवि
कुछ अर्से से शांत प्रदेश हिमाचल की फिजाओं में अपराध का जहर घुलना चिंताजनक है। अपराध का बढ़ता ग्राफ न केवल प्रदेश की छवि को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि गिरते सामाजिक मूल्यों का भी परिचायक है। देवभूमि कहे जाने वाले प्रदेश में हत्या, दुष्कर्म, चोरी व लूट के मामले रोज की बात बनते जा रहे हैं। आपराधिक घटनाएं प्रदेश की कानून-व्यवस्था को चुनौती दे रही हैं, जिससे लोगों में असुरक्षाबोध पनपने लगा है। अपराधी बेखौफ होकर वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। लोग न तो घर में और न ही बाहर खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। इसे पुलिस तंत्र की नाकामी कहें या अपराधियों के बढ़ते हौसले कि अपराध में कोई कमी नहीं आ रही। कुल्लू जिले के भुंतर में बेटे ने नशे में धुत्त होकर पिता को मार डाला तो पांवटा साहिब में साथी ने ही मजदूर की हत्या कर दी। ऊना में शक में अंधे व्यक्ति ने प्रेमिका को मौत के घाट उतार दिया। कन्या को देवी का रूप माना जाता है लेकिन नाबालिग बच्चियां भी दुष्कर्म का शिकार हो रही हैं। ऊना में परिचित ही नाबालिग लड़की का कई माह तक शारीरिक शोषण करता रहा। शिमला में युवती ने जिसे जीवनसाथी मानी, उसी ने उसका शारीरिक शोषण किया और लाखों रुपये ऐंठ लिए। ये मामले महज घटनाएं नहीं है बल्कि सोचने पर मजबूर करती हैं कि पहाड़ के बाशिंदे किस दिशा में जा रहे हैं। अपनों के खून से हाथ रंगना या किसी के भरोसे का खून करना पहाड़ की संस्कृति नहीं रही है। सभ्य समाज में अपराध के लिए कोई जगह नहीं है। इसके लिए सरकार व पुलिस की ओर से जो भी कदम उठाए जाने हैं, वे जल्द उठाए जाने चाहिए ताकि लोगों में सुरक्षा की चिंता न हो। लोगों का भी दायित्व है कि अपराध को छिपाएं नहीं और पुलिस को पूरा सहयोग दें। मूकदर्शक बनकर अपराध सहने या देखने से अच्छा है कि आवाज बुलंद कर उसे रोकने में सहायक बनें। अपराधियों के हौसले को कुंद करने के लिए समाज को ही पहल करनी होगी। जब तक समाज जागरूक नहीं होगा, आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश नहीं लग पाएगा। जरूरी है कि जनता जागरूक हो। कहा जाता है कि अपराधी जन्म से पैदा नहीं होते बल्कि हालात उन्हें अपराधी बनाते हैं। ऐसे लोगों को सुधारने की पहल से समाज का भला हो सकता है। बच्चों को ऐसे संस्कार मिलें कि वे अच्छे-बुरे में अंतर समझें।
[स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]