घपलों से नाता
विवादों का बिजली निगमों से चोली दामन का साथ है। कहीं मीटरों पर प्रयोगवाद तो कभी लाइन लॉस के भयावह आंकड़े उनकी कार्य कुशलता की पोल खोलते हैं तो कहीं पॉवर कट के बीच नो डिमांड का नोटिस चस्पा कर विद्युत संयंत्रों की यूनिटों में उत्पादन बंद कर दिया जाता है। घपलों से भी निगमों का नाता काफी पुराना है। ताजा मामला पिलर बॉक्स लगाने की योजना से है जिसमें अकेले भिवानी जिले में दस करोड़ का सामान स्टॉक से गायब है। पिलर बॉक्स योजना निगमों की विफलतम योजनाओं में से एक है पर ताज्जुब है कि अधिकारी इससे इतना मोह दिखा रहे हैं। भिवानी की ही बता करें तो पता चलेगा कि पिछले वर्ष शहरवासी पिलर योजना के खिलाफ सड़क पर उतरे जिसके बाद निगम ने काम समेट लिया था। इतना ही नहीं, यह घोषणा भी हुई थी कि योजना को दोबारा शुरू नहीं किया जाएगा। विरोध कई अन्य जिलों में भी हुआ पर एकाएक निगम अधिकारियों का मोह जागा और भिवानी में रातों-रात पिलर बॉक्स के लिए खंभे गाड़ दिए गए तथा दिन-रात काम करके पूरे शहर में ये लगा भी दिए गए। तस्वीर का दूसरा रूप यह है कि निगमों के स्टोर में करोड़ों का सामान गायब हो गया। कोई बताए ऐसा कितना सामान एक साथ मंगवा लिया गया जिसको संभालने में निगमों की सांस फूल गई?
आरंभ से ही निगमों की खरीद प्रक्त्रिया और अधिकारियों की प्रवृत्ति पर अंगुली उठती रही है। आरोप लगता रहा कि उपकरणों, मीटरों, तारों की बेतरतीब खरीद की जाती है और इस कार्य में उत्सुकता, तत्परता भी खूब दिखाई जाती है। डिजिटल मीटर से लेकर इंसुलेटेड तारों की खरीद में निगम खासी चर्चा में आ चुका है। विडंबना है कि किसी जिले में बिजली निगमों के स्टोर ठसाठस भरे हैं तो किसी में सामान न होने के कारण नए मीटर नहीं लगाए जा रहे, जर्जर तार नहीं बदले जा रहे। निगमों को विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए अपनी कार्यशैली पर मंथन करना चाहिए। स्टोर से करोड़ों का सामान आखिर कहां गया? निगमों ने जांच तो आरंभ कर दी है पर साथ ही उसे सुनिश्चित करना होगा कि केवल छोटी मछलियों को फांसने पर ही ध्यान केंद्रित न रहे। भ्रष्टाचार की शुरुआत शीर्ष से होकर निचले स्तर तक पहुंचती है। किसी प्रभाव या दबाव में मगरमच्छों को छोड़ दिया गया तो भिवानी क्या, हर जिले में बिजली निगमों के स्टोर से सामान घटता जाएगा।
[स्थानीय संपादकीय: हरियाणा]