जीएन वाजपेयी

योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश की कमान संभाले हुए महीने भर से ज्यादा हो गया है, मगर उनके धुर आलोचकों के सुर अभी तक नरम नहीं हुए हैं। ये वही आलोचक हैं जिन्हें उनकी ताजपोशी ने हैरत में डाल दिया था। जिस पर उन्होंने यही राय जताई कि भाजपा ने इतनी बड़ी जीत ऐसे गर्ममिजाज शख्स की झोली में डाल दी है जिसका एकमेव लक्ष्य तथाकथित ‘हिंदुत्व’ को बढ़ावा देना होगा। संभवत: इसी आधार पर उन्होंने यही माना होगा कि एक बड़ी गड़बड़ दस्तक दे रही है। यह ठोस तर्क भी उनके गले नहीं उतर पा रहा है कि अवसर और सत्ता के दायित्व के साथ आई जिम्मेदारी भी लोगों को बदल देती है। उनके विचारों को इतनी जल्दी खारिज कर देना या उन पर पक्षपात का आरोप लगाना भी अनुचित होगा, क्योंकि स्वाभाविक है कि वे योगी के महीने भर का कामकाज देखने को भी तैयार नहीं और इस नतीजे पर पहुंच गए हैं। प्रेम और उत्तरदायित्व का बोझ लोगों को परिवर्तित कर देता है। आप इतिहास के किसी भी दौर, समाज के किसी भी वर्ग या दुनिया के किसी भी कोने से ऐसी मिसाल दे सकते हैं जिसमें महाकाव्य रामायण के रचयिता वाल्मीकि के जीवन में हुआ नाटकीय रूपांतरण सबसे बड़ी नजीर के रूप में नजर आएगा।
संसद और सार्वजनिक जीवन में योगी आदित्यनाथ के अतीत को देखकर लगता है कि बुद्धिमान होने के साथ-साथ वह अपने वाकचातुर्य से जनता की नब्ज पकड़ने में माहिर हैं। गोरखनाथ मठ के महंत के रूप में भी वह सामाजिक सेवा में सक्रिय रहे हैं और एक खास मकसद और सीमित दायरे के बावजूद उन्होंने लोगों के आंसू पोंछने और खुशियां बांटने का काम किया है। उनकी भूमिका के प्रारूप और दायरे में जरूर बदलाव हुआ है, लेकिन अपेक्षित नतीजे अभी भी वही हैं। उनका जीवन ‘कर्मठता के पुजारी’ वाली तस्वीर ही पेश करता है जहां ऐसी चर्चा हो रही है कि वह केवल पांच घंटे ही सोते हैं और अपनी नौकरशाही से भी यही उम्मीद पाले हुए हैं कि वह उनकी कर्मठता के मंत्र को अपनाए। हालांकि उन्हें वाहिनियों जैसे संबद्ध राजनीतिक समूहों से बचना होगा ताकि खुशनुमा बनते माहौल में कोई खलल न पड़े।
अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में उन्होंने यही दर्शाया है कि वह ऊंची साख वाले ऐसे नेता के रूप में विकसित हो रहे हैं जो भविष्य में भाजपा के लिए बेहद कारगर साबित होंगे। लोकसभा में पांच बार के सांसद के रूप में उन्हें शायद भारतीय राजनीति की प्राथमिकताओं का भान हो गया होगा। अभी तक उनके द्वारा लिए गए निर्णय यही इंगित करते हैं कि भगवा चोले में वह एक गंभीर राजनेता के गुर सीख रहे हैं। वह अग्निपरीक्षा से गुजर रहे हैं और हम सभी यही टकटकी लगाए हुए हैं कि क्या वे इसमें और निखरकर निकलेंगे। हालांकि मेरा पुख्ता तौर पर यही मानना है कि वह इसमें और निखरकर बाहर आएंगे। उत्तर प्रदेश कोई सामान्य राज्य नहीं है। अलग-अलग पैमानों पर यह जितना बड़ा है, इसकी समस्याएं भी उतनी बड़ी हैं। राज्य कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार, बुनियादी ढांचे और कौशल विकास की कमी जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। उनकी टीम में उत्तर प्रदेश की आर्थिक समृद्धि की रूपरेखा तैयार करने वालों को निश्चित रूप से इन तथ्यों पर गौर करना चाहिए कि 1950 के दशक में देश के अग्रणी राज्यों में शुमार सूबा आर्थिक वृद्धि के मोर्चे पर इतना ज्यादा क्यों फिसल गया और जीडीपी प्रति व्यक्ति के पैमाने पर सबसे बुरी स्थिति वाले राज्यों की फेहरिस्त में कैसे पहुंच गया। एक जमाने में देश के तीसरे सबसे बड़े औद्योगिक शहर कानपुर में उद्योग धीरे-धीरे मरणासन्न स्थिति में क्यों पहुंच गए हैं और राज्य की पूंजी और श्रम का दूसरी जगहों पर क्यों पलायन हो रहा है? आर्थिक नीति थिंक टैंकों से उचित नीतियों की अपेक्षा की जाती है और इन नीतियों से अपेक्षित नतीजे भी निश्चित रूप से बेहतर निकलने चाहिए।
परंपरागत अर्थशास्त्र में कई प्रश्न उठते हैं। जैसे क्या उत्पादन किया जाए, कैसे उत्पादन किया जाए, किसके लिए उत्पादन किया जाए, कैसे फैसला लिया जाए और कौन फैसला करेगा। हमारे जैसी उदारीकृत अर्थव्यवस्था में कंपनियां ये फैसला करती हैं वे क्या उत्पादन करेंगी, कैसे करेंगी और किसके लिए करेंगी। इन कंपनियों की स्थापना और संचालन उद्यमियों द्वारा किया जाता है। लिहाजा उद्यमिता को संभावित अवसरों से जोड़ना होगा। पूंजी चाहती है कि उसका खुले दिल से स्वागत किया जाए और उसके लिए आदर्श-अनुकूल परिवेश हो जहां वह कई गुना बढ़ सके। रोजगार के रूप में लोग भी आर्थिक सक्रियता के विभिन्न माध्यमों से अपने लिए फायदा ही चाहते हैं।
हालांकि मैं यही मानता हूं कि अतीत भविष्य का सूचक नहीं हो सकता, लेकिन पुरानी फिसलन के प्रारूप और उसकी वजहों को देखते हुए गड़बड़ियों को दूर करने में यह उपयोगी होगा। उत्तर प्रदेश को भौतिक एवं सामाजिक बुनियादी ढांचे की दरकार है। यहां जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति सुरक्षा की आवश्यकता है। बुरी तरह जड़ जमा चुका भ्रष्टाचार अगर पूरी तरह खत्म न हो पाए तो उस पर काफी हद तक लगाम लगाना बेहद जरूरी है और इसके साथ ही कारोबार की राह सुगम बनाने की प्रक्रिया भी शुरू करनी होगी। उत्साही योगी आदित्यनाथ में साहस, दृढ़ता और शक्ति का वैसा मेल नजर आता है जिससे वह कदम उठाने से हिचकेंगे नहीं। हालांकि खुशहाली और समृद्धि की राह में एक सुव्यवस्थित, व्यावहारिक और सुविचारित नीति की दरकार है जिसमें संभावित परिणामों की रूपरेखा भी खिंची हो। विशुद्ध आंकड़ों वाली अवधारणा को भी अपेक्षित परिणाम देने वाले व्यापक ढांचे से ही जोड़ना होगा।
हाल में ही मैं अपने गृहनगर कानपुर गया। वहां सत्ता के नए सवेरे से लोगों की उम्मीदें और भरोसा देखकर हैरान रह गया जहां लोगों को यकीन हुआ है कि योगी-राज में उनकी आर्थिक तरक्की होगी और वे सम्मानित जीवन जी पाएंगे। अभी तक शुरुआत ठीकठाक हुई है और उम्मीदों का हौसला बुलंद है, लेकिन वंचित आकांक्षाओं की पूर्ति ही भाजपा, नरेंद्र मोदी और उनमें दिखाए इतने भरोसे को बरकरार रख सकती है। बुर्के वाली महिलाओं सहित समाज के प्रत्येक वर्ग के लोग उनकी देहरी पर बड़ी उम्मीदों से आ रहे हैं। तंगहाली और अन्याय से जुड़ी बेचैनी उनके चेहरों से साफ तौर पर नजर आती है। वास्तव में भारत की समृद्धि के तार भी उत्तर प्रदेश से जुड़े हैं। उनके विरोधियों को भी शांति से उनका आकलन-विश्लेषण करने के बाद ही अपनी भविष्यवाणी करनी चाहिए। आशा है कि योगीजी उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरेंगे।
[ लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं ]