बीते दिनों विश्व अवसाद दिवस पर योग और ध्यान की महत्ता को सराहा गया। योग को अवसाद दूर करने में औषधि से ज्यादा उपयोगी माना गया है। योग को एक साधारण व्यक्ति शारीरिक आसनों तक ही समझता है, परंतु आसन पतंजलि के अष्टांग योग का तीसरा कदम है। इससे पहले तो योग में यम और नियम का स्थान है। यम और नियम द्वारा मनुष्य के मन की बुराइयां जैसे राग-द्वेष, हर्ष-शोक, जीवन-मृत्यु, काम-क्रोध आदि दूर की जाती हैं और इस प्रकार निर्मल हुआ मन परमेश्वर से एकाकार हो जाता है। वास्तव में यही योग है। चिकित्सक अक्सर बहुत से रोगों को दूर करने के लिए व्यक्ति को वजन और मोटापा दूर करने की सलाह देते हैं। अवसाद भी मन से संबंधित मर्ज है। इसलिए इससे मुक्ति पाने के लिए मन में बुराइयां रूपी मोटापे को दूर करना आवश्यक होता है। यदि मनुष्य यम और नियम का पालन करे तो मन की बुराइयां दूर हो सकती हैं। यम एक प्रकार से नियत कानून की तरह है और नियम उस कानून को लागू करने वाली प्रक्रिया। स्वाध्याय द्वारा व्यक्ति अपने स्वयं का अध्ययन करता है।
इस अध्ययन में यदि यम के कानूनों के विपरीत कोई विकार नजर आता है तो उस विकार को उसे त्याग देना चाहिए, परंतु यह कार्य क्षणिक अवधि में नहीं हो पाता है, क्योंकि मन चंचल होता है। इसलिए मन को नियंत्रित करने में जो परिश्रम किया जाता है उसे तप की संज्ञा दी जाती है। स्वाध्याय को ध्यान द्वारा किया जाता है इसलिए ध्यान में स्वयं को शरीर से अलग समझकर मन में उठने वाले विचारों को देखा जाता है और इस प्रकार मनुष्य को अपने अंत:करण का असली स्वरूप नजर आ जाता है और वह मन की बुराइयों का उपचार कर सकता है। यम के अनुसार यदि मनुष्य सत्य और अहिंसा को अपनाएगा तो स्वत: मन में मलीनता के लिए कोई स्थान नहीं होगा। अपरिग्रह तथा अस्तेय का तात्पर्य है आवश्यकता से ज्यादा संग्रह और चोरी न करना। मोह का कारण मुख्यत: संग्रहित धन-संपत्ति ही है। इसलिए अवसाद का उपचार करने के लिए साधक को पतंजलि के अष्टांग योग का अक्षरश: पालन करना चाहिए। यम और नियम से साधक का मन निर्मल होकर अवसाद दूर भाग जाएगा। इसलिए योग को पूर्णतया अपनाने के लिए अष्टांग योग का पूरा ज्ञान प्राप्त करके इसकी पूरी प्रक्रिया करने के बाद ही पूर्ण आरोग्य की कामना पूरी हो सकती है।
[ कर्नल (रिटायर्ड) शिवदान सिंह ]