पूर्व के देशों में लोगों की यह मान्यता है कि मनुष्य जीवन के तीन पहलू हैं और तीनों का विकास होना चाहिए। ये पहलू हैं-बौद्धिक, शारीरिक और आध्यात्मिक। दुर्भाग्य से हम अपने आध्यात्मिक पहलू को भूल गए हैं, जबकि हम बौद्धिक हैं और शारीरिक विकास में बहुत आगे बढ़ चुके हैं। चाहे कोई पूर्व से हो या पश्चिम से, सभी आमतौर से यह मानते हैं कि हमारे शरीर में आत्मा का निवास है और आत्मा ही वह ताकत है, जो हमें जीवित रखती है। यह विश्वास किया जाता है कि जब आत्मा शरीर को छोड़ती है तो मृत्यु हो जाती है। हम खुशनसीब हैं कि हमने मनुष्य जन्म पाया है। अपने इसी जीवन में यदि हम अपने आध्यात्मिक विकास के लिए समय नहीं निकालेंगे तो हम मनुष्य जन्म का पूरा फायदा हासिल नहीं कर सकेंगे। अध्यात्म जीवन के उच्च आदर्र्शों को विकसित करना सिखाता है और बेहतर इंसान बनाना सिखाता है। अध्यात्म का मतलब है बिना रंग, धर्म, देश, अमीर-गरीब या पूर्व-पश्चिम का भेदभाव बगैर पूरी इंसानियत के प्रति अपने दिलों में प्यार पैदा करना। प्रभु की ज्योति सभी लोगों के अंदर है, यह अहसास हमें विश्व में शांति और समता का भाव लाने में मदद करेगा।
एक बार हम महसूस कर लें कि हमारी आत्मा, परमात्मा का अंश है और यह अंश सभी इंसानों के अंदर समान रूप से है और इंसान ही नहीं, सृष्टि के सभी जीवों में है तो हम किसी का कोई नुकसान नहीं करेंगे। उसके बाद हम सबके अंदर अच्छाई देखना शुरू कर देंगे। हम दूसरों की भलाई के बारे में सोचने लग जाएंगे। हम प्रकृति को नष्ट करना बंद कर देंगे। प्रभु ने इस पृथ्वी पर जिंदा रहने के लिए कुदरत के उपहार प्रदान किए हैं। जब हम कुदरत की चीजों को नष्ट करते हैं, जो हमें मिली हैं, अथवा जब हम जमीन से अपनी जरूरत से अधिक वस्तुएं लेते हैं तो जमीन को सुधारने के बजाय उसे प्रदूषित करते हैं। इस स्थिति में हम पूरी दुनिया को नुकसान पहुंचाते हैं। ब्रह्मांड को पूरे संतुलित तरीके से बनाया गया है। यदि हम प्रकृति का पूरा ध्यान नहीं रखते हैं तो बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। और यदि हम स्वयं का पूरा ध्यान नहीं रखते हैं तो बहुत नुकसान उठाना पड़ता है। चाहें वह बौद्धिक रूप से हो, शारीरिक रूप से हो या आध्यात्मिक रूप से हो तो दुनिया में हमारा जीवन भी प्रभावित होता है।
[ संत राजिन्दर सिंह जी महाराज ]