शब्दों की ताकत तलवार और गोली की ताकत से अधिक होती है। शब्दों के प्रभाव की सीमा को परिभाषित करना मुश्किल है। वेद में तो शब्द को ब्रह्म कहा गया है। शब्दों का यदि समझदारी के साथ उचित उपयोग किया जाए तो आधी सफलता पहले से ही तय हो जाती है। इसके उलट शब्दों के गलत इस्तेमाल से महाभारत सरीखी स्थितियां निर्मित हो जाती हैं। जो लोग शब्दों का सही समय पर और सही तरीके से इस्तेमाल करने में कुशल होते हैं, वे उस समय इतिहास रचने का कार्य करते हैं। इतिहास में ही नहीं साहित्य, समाज, विज्ञान, भूगोल, धर्म, अध्यात्म और दर्शन सभी में शब्दों की सर्वोच्चता स्वीकार की गई है। शब्द के बगैर मानव गूंगा है। बेकार और आधारहीन है। इसलिए ‘तोल मोलकर बोल’ की महत्ता बताई गई है। जिस तरह से ब्रह्म सर्वशक्तिमान है, उसी तरह से शब्द भी सर्वशक्तिमान हैं। इस शब्द शक्ति का उपयोग हम अपने उत्थान के लिए करते हैं कि पतन के लिए, यह समझने की जरूरत है। शुभ, सुंदर और शिवतत्व से पूर्ण शब्द हमें जहां अंदर और बाहर से शक्तिमान और ऐश्वर्यवान बना देते हैं। वहीं अशुभ, असुंदर और अपशब्द हमें अंदर से खोखला बनाते हैं और बाहर से भी पतित बना देते हैं। शब्दों की शक्ति ने महात्मा बुद्ध, भगवान राम, योगीराज कृष्ण, भगवान महावीर और महात्मा गांधी को पूज्य बना दिया था। हमारे अंदर यदि सद्गुणों की शब्द सामथ्र्य है, तो हम दूसरों को वह दे सकते हैं, जिसे करोड़ों रुपये खर्च करके भी नहीं पाया जा सकता है। ज्ञानी वही है जो शब्दों को जीवन का सही तरीके से आधार बनाकर अपना और दूसरों का कल्याण करता है।
अच्छे उपदेश, श्रेष्ठ वचन, वेदों के मंत्र और पुराणों की कथाओं की शक्ति शब्दों पर ही तो आधारित है। शब्द ऐसे धन हैं, जो अच्छे तरीके से खर्च करने पर लगातार बढ़ते जाते हैं। हमें बढ़ाते जाते हैं और हमारा ही नहीं अनगिनत लोगों का कल्याण करते हैं, लेकिन अशालीन शब्दों का उपयोग उसी तरह से है, जैसे बैंक में रखा गया काला धन। जो न तो अपना ही कल्याण करता है, न ही सुखी बनाता है और न ही किसी व्यक्ति का भला करता है। इसलिए कहा गया है कि शब्द विज्ञान को समझें। शब्द साहित्य को समझें और शब्द दर्शन की महत्ता को समझें। जो समझ गया, उसका कल्याण हो गया, जो नहीं समझा उसका जीवन बेकार हो गया।
[ अखिलेश कुमार ]