क्षमा शर्मा

यह घटना बेंगलुरु के पास घटित हुई। घटना के शिकार बने साईराम तिरपन साल के हैं। वह बेंगलुरु में प्राइवेट सिक्योरिटी सेवाएं प्रदान करने वाली एक निजी कंपनी के सीईओ हैं। अफसोस कि दूसरों को सुरक्षा प्रदान करने के पेशे में लगे इस शख्स को अपनी सुरक्षा कर पाना मुश्किल हुआ। हुआ यूं कि साईराम और उनकी पत्नी हमसा राम तमिलनाडु से लौट रहे थे। उनमें कई दिन से अपनी बेटी की शादी को लेकर विवाद चल रहा था। रास्ते में वे एक होटल में रुके। खाना खाया और शराब भी पी। लौटते हुए हमसा कार चला रही थीं। रास्ते में फिर से लड़की की शादी को लेकर विवाद होने लगा। अचानक साईराम को पत्नी की किसी बात पर इतना गुस्सा आया कि उसने उसे एक थप्पड़ जड़ दिया। हमसा ने कार एक ओर रोकी और पति पर गोली चला दी। साईराम फौरन कार से उतरकर बाहर भागा और बचने के लिए सामने से आती बस में चढ़ गया। हमसा ने कार से उस बस का पीछा किया। फिर किसी फिल्मी दृश्य के मानिंद चलने वाले गैंगवार की तरह कार को बस के आगे लगा दिया। फिर उसने बस में चढ़कर साईराम पर गोली चलाने की कोशिश की। यात्रियों ने बड़ी मुश्किल से उसे पकड़कर पुलिस के हवाले किया। पुलिस ने पूछताछ के लिए एक महिला अधिकारी को बुलाया, मगर ज्यादा पूछताछ नहीं हो सकी, क्योंकि हमसा नशे में थी। पुलिस यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि पिस्तौल का लाइसेंस है या नहीं? उधर अस्पताल में भर्ती साईराम की हालत गंभीर बनी हुई है।
कोई चाहे तो इस वाकये के अपनी-अपनी सुविधा से शीर्षक लगा सकती है। मसलन-‘सदियों से सताई गई औरत का बदला’ या ‘बहुत हुआ पतियों अब सावधान, आ गई हैं पिस्तौल वाली बीवियां’ वगैरह-वगैरह। अगर मौजूदा दौर के सतही स्त्री विमर्श के नजरिये से देखें तो साईराम ने पत्नी को थप्पड़ मारा और बदले में पत्नी ने गोली चला दी तो क्या गलत किया। आखिर पति को थप्पड़ मारने का क्या अधिकार है? ऐसे में बचाव के लिए अगर पत्नी ने गोली चला दी तो कुछ भी गलत नहीं। बदला लेना कोई बुरी बात तो नहीं। सच है। इन दिनों परिवार नाम की इकाई में सामंजस्य, सहिष्णुता, एक-दूसरे का सम्मान, दया, ममता, करुणा, क्षमा जैसे मूल्य पिछड़े हुए, रूढ़िवादी और गए जमाने के बन गए हैं। अपराध के बदले उससे भी बड़ा अपराध करना सही माना जाता है। तर्क की कसौटी पर अपना ही पक्ष हमेशा सौ फीसदी सही साबित करने की कोशिश की जाती है। इन दिनों फिल्मों, धारावाहिकों और यहां तक कि साहित्य में भी एम्पावर्ड या सशक्त औरत की जो छवि पेश की जाती है वह लगभग हमसा जैसी ही है जो हर ज्यादती का बदला लेती है। पति ने थप्पड़ मारा तो गोली चला सकती है। वह कोई रोती-बिसूरती, आंसू बहाती त्राहिमाम करती औरत नहीं है। वह कार चलाती है, आत्मनिर्भर जैसी है। आत्मरक्षा के लिए काली मिर्च का स्प्रे तो क्या पिस्तौल पास में रखती है। असल में बदले की भावना से भरी हिंसक औरत की छवि को बाकी सभी औरतों के लिए आदर्श की तरह से पेश किया जा रहा है। चैनलों में अक्सर किसी लड़के को पीटती लड़कियां दुर्गा और लक्ष्मीबाई का अवतार कहकर दिखाई जाती हैं। यदि लड़के लड़कियों के साथ ज्यादती करते हैं, हिंसा करते हैं और वह गलत है तो लड़कियों की हिंसा भी सही नहीं मानी जा सकती। इसमें यह कहना कि लड़कों ने जरूर लड़कियों को छेड़ा होगा तभी उन्होंने ऐसा किया होगा, यह बात हमेशा सच नहीं होती। हरियाणा की वे दो बहने तो हमें याद ही होंगी जो ‘फोटो ऑप्स’ और वीडियो बनवाने के लिए ही मारपीट करती थीं। पहले संयुक्त परिवार के दिनों में पति-पत्नी के अलावा परिवार में बहुत से लोग होते थे। इसलिए अक्सर अपनी अलग दुनिया बसाने के सपने देखे जाते थे। फिर परिवार या कि यूं कहें कि संयुक्त परिवार के रूप में माता-पिता और पति के एक दो भाई-बहन आदि रह गए। उसके बाद यह परिवार भी बिखरा और अब पति-पत्नी ही बचे। अब घर-घर में पति पत्नी के बीच हर बात पर तकरार, कलह और प्रतिद्वंद्विता के मोर्चे खुले हुए हैं जिन्हें बहुत से लोग अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और तमाम तरह के हितों को बढ़ावा देने के लिए खूब हवा देने लगे हैं। आजकल तो यह भी कहा जाने लगा है कि परिवार के मुकाबले अकेले रहना बहुत फायदेमंद है। कोई नहीं बताता कैसे? अगर पूरा परिवार साथ रहता है तो एक फ्रिज, टीवी, माइक्रोवेव और घर इत्यादि में ही काम चल सकता है। दूसरी ओर परिवार के पांच सदस्य अगर अलग-अलग अकेले रहते हैं तो हर एक को अलग उपभोक्ता वस्तुएं चाहिए। इसलिए आजकल प्यार के मुकाबले तकरार को खूब बढ़ा-चढ़ाकर और दुनिया की सबसे अच्छी बात बताकर पेश किया जाता है। इसमें अपने असली मकसद को छिपाकर अपनी-अपनी तरह से तमाम किस्म के विमर्शों के छौंक लगाए जाते हैं।
हमसा और साईराम की कहानी को भी सब अपनी-अपनी तरह से देखेंगे। कोई साईराम को सताया गया पति बताएगा तो कोई हमसा को सदियों से पति और पुरुष विमर्श द्वारा सताई गई बेचारी पत्नी। हो सकता है कि अंत में थप्पड़ मारने के कारण पत्नी द्वारा किए गए कृत्य को माफ कर दिया जाए या फिर उकसाने के कारण सजा पति साईराम को मिले। पति-पत्नी के बीच अगर कोमल भावनाओं के तार ही नहीं बचे तो वह रिश्ता दूर तक चल भी नहीं सकता। आजकल ऐसा ही हो रहा है। रिश्तों की कोमलता ही नहीं बची रहेगी तो भला रिश्ते कैसे बचेंगे? साईराम और हमसा की कहानी शायद यही कहती है।
[ लेखिका साहित्यकार और वरिष्ठ स्तंभकार हैं ]