रामिश सिद्दीकी

वक्फ का शाब्दिक अर्थ है किसी चीज को स्वयं से अलग कर देना। धार्मिक या पवित्र कार्य के लिए अपनी चल या अचल संपत्ति को दान में देने को वक्फ कहा जाता है। इस्लामिक धर्मशास्त्र के अनुसार ऐसी संपत्ति का प्रयोग गरीबों और जरूरतमंदों के लिए होना चाहिए। यह अधिकार संपत्ति के मालिक को ही होता है कि वह अपनी संपत्ति को वक्फ करना चाहता या नहीं? आज भारत में 30 वक्फ बोर्ड हैं। वर्ष 2011 में न्यायाधीश शाश्वत कुमार के अधीन एक कमेटी का गठन हुआ था जिसने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत में वक्फ की कुल संपत्ति की कीमत लगभग एक लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि इस संपत्ति से होने वाली आय मात्र 163 करोड़ रुपये है, जबकि इसे वास्तव में 12 हजार करोड़ रुपये होना चाहिए। इस आंकड़े में इतना भारी अंतर होने की वजह वे लोग और संस्थाएं हैं जिनकी निगरानी में यह संपत्ति आई। विगत 70 सालों में प्रत्येक सरकार ने वक्फ की संपत्ति के साथ सौतेला बर्ताव किया। जिन स्थानों को समाज की बेहतरी के लिए उपयोग में लाया जा सकता था उनका इस्तेमाल छोटी-बड़ी संस्थाओं और व्यक्तियों को ख़ुश करने में किया गया। वक्फ की संपत्ति को थाली में सजा कर कुछ प्रभावी लोगों को भेंट भी कर दिया गया। अगर केंद्र सरकार प्रत्येक वक्फ बोर्ड के पिछले दस सालों के कामकाज और आय-व्यय की छानबीन ही करवा ले तो हकीकत सामने आ जाएगी। वक्फ की तमाम जमीनों या इमारतों को कुछ लोगों द्वारा गैर कानूनी तरीके से या तो कब्जाया गया है या फिर गैर कानूनी तरीके से उनका लेन-देन हुआ है।
वक्फकी संपत्ति समाज और देश की संपत्ति है। इस्लाम में संपत्ति को दान कर देने का विकल्प ही इसलिए रखा गया, क्योंकि समाज में हमेशा दो तरह केतबके रहे हैं। एक ऐसा जिसकी आय या संपत्ति अधिक रही है और इसकी वजह से वह समाज की अगली पंक्ति में खड़ा पाया जाता रहा है। दूसरा तबका वह जो गरीबी के चलते अपने को अंतिम पंक्ति में पाता है। इस अंतर को पाटने के लिए ही इस्लाम में अपनी संपत्ति को वक्फकरने की व्यवस्था वजूद में आई है। एक बार हजरत मोहम्मद साहब के पास उनके साथी उम्र इब्न अल-खत्ताब आए और बताया कि मदीना से करीब 150 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर खयबर में उनकी एक जमीन पड़ी है, वह उसका क्या करें। इस पर हजरत मोहम्मद साहब बोले कि तुम अपनी जमीन को स्वयं से अलग कर दो और उससे आने वाले मुनाफे को दान में दे दो। इस्लाम में दान को बहुत बड़ा कार्य बताया गया है। यही वजह थी कि पूर्व में अनेक मुस्लिम शासकों और नवाबों ने अपनी संपत्ति के एक हिस्से को वक्फकिया। हजरत मोहम्मद साहब ने जब उम्र इब्न को जमीन से होने वाले मुनाफे को समाज में दान करने को कहा था तो वह किसी समाज विशेष के लिए नहीं था, परंतु आज लोगों ने वक्फ संपत्ति से आने वाले लाभ को पूरी तरह एक समाज से जोड़ दिया है। इससे भी ज्यादा अफसोसजनक बात यह है कि जो लोग अपनी संपत्तियों को इसलिए छोड़ कर गए थे कि समाज का एक बड़ा हिस्सा उससे लाभ उठा पाएगा, उनकी संपत्तियों का इस्तेमाल कुछ लोगों द्वारा स्वयं के फायदे के लिए किया जा रहा है। यह भी दुख की बात है कि जिन उलमाओं की जिम्मेदारी समाज को वक्फके फायदों से अवगत कराने की थी आज उनमें से ही तमाम वक्फकी जमीनों और इमारतों पर काबिज हैं। वक्फको समुदाय केंद्रित नहीं किया जा सकता। वह समस्त समाज की बेहतरी के लिए होता है। सरकार को चाहिए कि वह वक्फ बोर्डों में समय के साथ घर कर गईं समस्याओं को दूर करने के लिए एक नीति बनाने पर विचार करे ताकि इन स्थानों को समाज कल्याण के कार्य में लाया जा सके। ऐसे अनेक वक्फ स्थान हैं जहां सरकार कौशल विकास केंद्र या ऐसे ही अन्य केंद्र खोल सकती है।
राज्य वक्फ परिषदों की हालत लगातार खस्ता होती जा रही है। इस बुरी हालत की एक बड़ी वजह यह भी है कि सिर्फ समाज विशेष के लोगों को ही मुख्य रूप से इन संस्थानों में अधिकारी के रूप में भेजा जाता है। सरकारों की इस नीति के चलते वक्फ संस्थान ऐसे बुद्धिजीवियों से वंचित हो जाते हैं जो दूसरे समाज से होने के कारण इन संस्थानों में स्थान ग्रहण नहीं कर पाते। हाल में उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मंत्री पर वक्फ संपत्ति में हेरा-फेरी करने के आरोप लगे हैं जिसकी रिपोर्ट केंद्रीय वक्फ परिषद ने प्रधानमंत्री के पास भेजी है। इस पूरे प्रकरण पर मुझे एक शेर याद आ रहा है-तुम ही कातिल, तुम ही शाहिद, तुम ही मुंसिफ, अकर्बा मेरे, करें कत्ल का दावा किस पर। यह इस देश में कोई पहला मामला नहीं है। बीते वर्षों में कई बार सुनने में आया है कि समाज के रहनुमा ही अपने दिखाए रास्ते से भटक गए। हाल में सेंट्रल वक्फ काउंसिल के सदस्य सैयद एजाज अब्बास नकवी ने उत्तर प्रदेश के शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड की संपत्तियों और कार्यप्रणाली का सर्वे किया। उनकी रिपोर्ट के अनुसार इलाहाबाद, रामपुर, लखनऊ, कानपुर, मेरठ की औकाफ संपत्तियां खुर्द-बुर्द की गई हैं। अगर अन्य प्रदेशों में इसी तरह की छानबीन हो तो शायद हर जगह वक्फ की संपत्तियों में करोड़ों के घपले-घोटाले मिलेंगे। वक्फकी अनेक संपत्तियां ऐसी हैं जिनके खिलाफ न्यायालय के फैसले तक आए हैं। अदालत के आदेश के बाद भी उनमें गैर कानूनी तरीके से रह रहे किरायेदारों ने उन्हें खाली नहीं किया है। इसमें प्रशासन का भी लचर रवैया रहा है और साथ ही सरकारों द्वारा गठित किए गए बोर्डों का भी। मोदी सरकार को इस पर विचार करने की आवश्यकता है कि कैसे वक्फ बोर्ड को एक लाभदायक संस्था का रूप दिया जा सके? वक्फ की संपत्तियों को पूरी तरह सरकार के निरीक्षण में लाने की जरूरत है। साथ ही ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की भी आवश्यकता है जो इनका दुरुपयोग कर रहे हैं।
[ लेखक इस्लामिक विषयों के जानकार हैं ]