'एक राष्ट्रभाषा हिंदी हो, एक हृदय हो भारत जननी'-दक्षिण भारत के प्रख्यात साहित्यकार और हिंदी सेवी सुब्रमण्यम भारती की ये पंक्तियां आज भी सार्थक हैं। प्रेरित करती हैं, क्योंकि हिंदी को राष्ट्रभाषा या विश्वभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का संकल्प अभी अधूरा ही है। हिंदी को राष्ट्रभाषा या विश्वभाषा के रूप में स्थापित करने की यह चुनौती बहुत बड़ी है। इस चुनौती को देखते हुए छोटे-बड़े प्रयासों से आशा जरूर बंधती है। इसी तरह का एक प्रयास विश्व हिंदी दिवस का आयोजन है, जिसे 10 साल में पहली बार अदम्य उत्साह, ऊर्जा और जिजीविषा के साथ 10 जनवरी को दिल्ली में विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित किया गया है।

लगभग 41 साल पहले नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन का उद्घाटन 10 जनवरी को हुआ था, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और मारीशस के प्रधानमंत्री शिवसागर राम गुलाम की उपस्थिति ऐतिहासिक रही। इस सम्मेलन में व्यक्त संकल्पों की ऊर्जा के साथ 2006 से भारत सरकार द्वारा प्रतिवर्ष 10 जनवरी को 'विश्व हिंदी दिवस' घोषित किया गया। तभी से अनेक दिवसों, समारोहों की शृंखला में विश्व हिंदी दिवस भी प्रत्येक साल का एक सामान्य सा अवसर बनकर रह गया और कुछ सरकारी अधिकारी, कर्मचारी मिलकर इस दिवस की रस्म अदायगी करते रहे। 2006 में 10 जनवरी को आयोजित प्रथम विश्व हिंदी दिवस और बाद के सालों में आयोजित इस दिवस के कार्यक्रम प्रभावी नहीं रहे। साल में एक बार सितंबर में हिंदी सप्ताह या हिंदी पखवाड़ा या 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने के रस्मी आयोजनों की परंपरा के आगे 'विश्व हिंदी दिवस' की संकल्पना फीकी और धूमिल ही रही। किंतु औचित्य यह है कि विश्व हिंदी दिवस जहां विश्व हिंदी सम्मेलन के प्रस्तावों की दृष्टि से हिंदी का समीक्षापर्व, हिंदी की प्रगति संबंधी आत्मालोचन का अवसर है वहीं हिंदी दिवस राजभाषा के रूप में हिंदी के प्रयोग के पुनरीक्षण का आयोजन है।

संभवत: इसी दृष्टि से रविवार यानी 10 जनवरी को नई दिल्ली में विदेश मंत्रालय नई ऊर्जा के साथ विश्व हिंदी दिवस के आयोजन को 'शीर्ष महत्व का अवसर' बनाने के प्रयास में हैर्। ंहदी दिवस के अलावा विश्व हिंदी दिवस की पृष्ठभूमि, आधारों और संकल्पना को आम जन तक पहुंचाने और संपूर्ण राष्ट्र के हिंदी प्रेमियों के लिए यह एक अनूठा अवसर होगा, जिसके बारे में लोगों को अब तक बहुत जानकारी नहीं है। विश्व हिंदी सम्मेलन के दस आयोजनों के कई सौ प्रस्ताव अब भी सरकारी दस्तावेज के रूप में फाइलों की धूल चाट रहे हैं। किंतु कुछ प्रस्तावों को मूर्तरूप भी मिला। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन के अनंत शेवड़े, मधुकर राव चौधरी, सुधाकर पांडेय, वेंमूरि राधाकृष्ण मूर्ति, बालशौरि रेड्डी जैसे सूत्रधारों ने प्रस्तावों को अमली जामा पहनाने की दिशा में अथक प्रयास किया।

इन प्रयासों के परिणामस्वरूप वर्धा में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना हुई और आगे चलकर सम्मेलन के प्रस्तावों के अनुरूप ही मारीशस में विश्व हिंदी सचिवालय की संकल्पना ने मूर्त रूप लिया और हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मारीशस के नैशविले शहर में इसकी आधारशिला रखी। इसी प्रकार अन्य कुछ प्रस्ताव ही मूर्तरूप ले सके। नौ विश्व हिंदी सम्मेलनों के करीब साढ़े चार सौ प्रस्ताव केवल विचार और अवधारणा के स्तर पर ही पड़े हैं। इनकी अद्यतन समीक्षा के साथ इन्हें अमली जामा पहनाना एक बहुत बड़ी चुनौती है या फिर विकल्प यह है कि निष्प्रयोज्य हो चुके अनेक पिछले प्रस्तावों को सिरे से खारिज कर दिया जाए। विश्व हिंदी दिवस इसी प्रकार के विषयों की समीक्षा और इनके संबंध में कार्ययोजना या कार्य की दिशा निश्चित करने का अवसर होना चाहिए। हिंदी प्रेमियों के लिए हर्ष और संतोष का विषय है कि विश्व हिंदी सम्मेलन के 41 साल और विश्व हिंदी दिवस के 10 सालों के बाद भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने बड़े पैमाने पर 10 जनवरी को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय महत्व का अवसर बनाने का प्रयास किया है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में आयोजित हो रहे 10वें विश्व हिंदी दिवस समारोह को ऐतिहासिक बनाने के प्रयासों के पीछे भारत की भाषाई अस्मिता और राष्ट्रबोध की भावना का प्रसार प्रमुख है।

अब तक के 10 विश्व हिंदी सम्मेलनों का लेखा-जोखा और समीक्षा जरूरी है। विश्व हिंदी दिवस इसका अवसर होना चाहिए। पिछले नौ सम्मेलनों की बात छोड़ भी दें तो 10वां भोपाल विश्व हिंदी सम्मेलन जिस गौरव, भव्यता और गंभीर चिंतन के साथ संपन्न हुआ उसकी छाप अमिट रहेगी। किंतु सम्मेलन की समाप्ति के बाद उपेक्षा और सरकारी निष्क्रियता को समाप्त कर सम्मेलन की अनुशंसाओं को लागू कर इन्हें मूर्तरूप देने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता सभी महसूस करने लगे हैं। भोपाल के दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन के बार्द ंहदी की स्थिति में कितना बदलाव आ सका, यह हमारे चिंतन का विषय होना ही चाहिए।

सम्मेलन में पत्रकारिता की भाषा के प्रयास पर विमर्श में मेरा यह प्रस्ताव अनुशंसा के रूप में स्वीकृत हुआ कि कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सम्मान में उनके नाम पर हिंदी पत्रकारिता के समग्र विकास के लिए केंद्रीय हिंदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए और महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता पाठ्यक्रम केंद्र देश के अन्य राज्यों में भी स्थापित किए जाएं। ऐसी ही अनेक महत्वपूर्ण अनुशंसाएं अस्तित्व में आने की बाट जोह रही हैं। यह आशा और अपेक्षा की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह तथा विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में विश्व हिंदी दिवस का आयोजन हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में महत्वपूर्ण ऐतिहासिक अवसर होगा।

[लेखक प्रो. राममोहन पाठक, काशी विद्यापीठ वाराणसी के पत्रकारिता संस्थान के पूर्व निदेशक हैं]