अमेरिकी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद ही डोनाल्ड ट्रंप के कुछ फैसलों से राजनीतिक और राजनयिक गलियारों में भूचाल आ गया। उन्होंने आव्रजन और व्यापार पर आदेश जारी किए। इस्लामिक चरमपंथ और ईरान के साथ अमेरिकी संबंधों पर तल्ख बयान दिया। ये कदम दर्शाते हैं कि वह चुनावों में किए पने वादों को किसी भी सूरत में पूरा करना चाहते हैं। तमाम मेरिकियों को डर है कि इससे खुलेपन और उदारवादी देश की उनकी पहचान खतरे में पड़ जाएगी। लिहाजा दुनिया में उनकी जैसी सोच रखने वाले तमाम लोग ट्रंप के कदमों का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

ट्रंप वही कदम उठा रहे हैं जो उनके ‘मेरिका फस्र्ट’ यानी सबसे पहले मेरिका वाले एजेंडे के लिहाज से मुफीद हैं। पने पूर्ववर्तियों पर उन्होंने एक तरह से मेरिका के राष्ट्रीय हितों की नदेखी करने का आरोप मढ़ा। तमाम मुद्दों को मद्देनजर रखते हुए इस पर सवालिया निशान लगते हैं, क्योंकि जलवायु परिवर्तन और इस्लामिक चरपमंथ से निपटने को लेकर मेरिका के पूर्व नेताओं ने पने हिसाब से मेरिका के राष्ट्रीय हितों की पूर्ति की। ट्रंप ने भी आक्रामक रवैया ख्यितार किया है और मीडिया के एक वर्ग के लावा कुछ प्रमुख देशों के राष्ट्रप्रमुखों के साथ टेलीफोन पर उनकी तल्ख बातचीत से यह जाहिर भी होता है। मैक्सिको के राष्ट्रपति से उन्होंने जिस लहजे में बातचीत की उसके चलते मैक्सिको के राष्ट्रपति ने पना मेरिकी दौरा ही रद कर दिया। ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री के साथ भी वह बहुत बेरुखी से पेश आए और इस बात का भी खयाल नहीं रखा कि ऑस्ट्रेलिया मेरिका का भरोसेमंद साथी रहा है।

हालांकि ओबामाकेयर जैसी योजनाओं को बंद करने के उनके फैसले का सर सिर्फ मेरिका को ही ङोलना होगा, लेकिन उनके न्य कदमों से समूची दुनिया प्रभावित होगी। खासतौर से उनकी आव्रजन नीति निशाने पर है, जिसके बारे में तमाम लोग मान रहे हैं कि इससे मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है। इस पर गंभीरता से ध्यान देने की दरकार है, क्योंकि इससे न केवल मेरिका, बल्कि पश्चिमी देशों और इस्लामिक जगत के बीच तनातनी बढ़ सकती है। इससे पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ेगा जो क्षेत्र भारतीय हितों के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। यह भी एक कारण है कि भारत को इस पर करीबी नजर बनाए रखनी चाहिए। भारत के लिए यही काफी नहीं होगा कि वह ट्रंप की आव्रजन नीति को सिर्फ भारतीय आइटी पेशेवरों को वीजा मिलने के चश्मे से ही देखे। हालांकि देश के आर्थिक हितों के दृष्टिकोण से वह पहलू भी हम है।

आव्रजन नीति पर ट्रंप के प्रत्याशित आदेश से इराक, ईरान, सीरिया, यमन, सूडान, सोमालिया और लीबिया के नागरिकों के मेरिका में प्रवेश पर रोक लग गई थी। ये सभी मुस्लिम बहुल देश हैं और पने चुनाव भियान में ट्रंप ने इस्लामिक आतंकवाद के खतरों पर खासा जोर दिया था। उनके इस फैसले का व्यापक विरोध हुआ। खुद मेरिका में तमाम लोग सड़कों पर उतर आए। उनके इस फैसले को दालत में चुनौती दी गई और पीलीय जज ने प्रतिबंध को खारिज कर दिया। यह ट्रंप के लिए बड़ा झटका है, लेकिन वह भी भी पने रुख पर कायम हैं। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद उन्होंने कहा था कि चरमपंथी इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ सभ्य संसार को एकजुट कर उसे धरती से मिटा देंगे। हालांकि कानूनी नजरिये से ट्रंप प्रशासन प्रतिबंध के पीछे धार्मिक आधार से इनकार कर रहा है, लेकिन सल में यह इस्लामिक दुनिया को लेकर ट्रंप के समग्र दृष्टिकोण को ही दर्शाता है।

अगले तीन महीनों में मेरिकी विभाग उन देशों की सूची बनाएंगे जो वहां से मेरिकी वीजा के लिए होने वाले संदिग्ध आवेदनों की जांच कराने में सहयोग करेंगे। जो देश इसमें सहयोग नहीं करेंगे उनकी लग फेहरिस्त तैयार की जाएगी और उन देशों के नागरिकों को तब तक मेरिकी वीजा नहीं दिया जाएगा जब तक वे जांच में मेरिकी एजेंसियों की मदद नहीं करते। ऐसे कोई संकेत नहीं दिखते कि वीजा संबंधी मामलों में मेरिका दूसरे देशों के साथ परस्पर रूप से सहयोग करेगा। इसमें संदेह है कि क्या वे ऐसा कर पाएंगे, क्योंकि उनके निजता कानून इस राह में वरोध पैदा करेंगे। मगर यह ट्रंप की मेरिका फस्र्ट नीति का हिस्सा है। यह ऐसा मसला है जो शायद भारत को भी चिंता में डाल सकता है।

जो भी हो, ट्रंप का आदेश और उसके पीछे का दृष्टिकोण खराब सोच वाला है, जिसका र्थ होगा कि तमाम देशों खासतौर से मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के लिए मेरिकी वीजा हासिल करना दुश्वार हो जाएगा। हालांकि आदेश की वजह आपत्तिजनक नहीं हैं, लेकिन तमाम मेरिकियों को लगता है कि यह व्यावहारिक रूप से मुसलमानों के खिलाफ है। उदार मेरिकी महसूस करते हैं कि यह मेरिकी मूल्यों और मेरिकी संविधान का मखौल उड़ाता है। इसके लावा आदेश उन प्रतिबंधित देशों के ऐसे लोगों के लिए भी मुश्किलें पैदा करेगा जो मेरिका में वैध वीजा के साथ रह रहे हैं। ऐसे तकरीबन 60,000 लोग हैं। एक समस्या यह भी है कि ट्रंप के फैसले पर पीलीय दालत के फैसले न्यायपालिका के स्तर पर एक भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी है।

ट्रंप के आदेश में उल्लेख है कि मुस्लिम देशों में सताए गए ल्पसंख्यकों को वीजा देने में तरजीह दी जाएगी। वास्तव में यह कदम भी ईसाइयों को राहत देने के मकसद से उठाया गया है, न कि सुन्नी देशों में शिया मुसलमानों या पाकिस्तान में हमदिया मुसलमानों के लिए। ट्रंप निश्चित रूप से ईसाई धर्म का पूरी गंभीरता से पालन करते हैं। यह देखने वाली बात होगी कि दालतों में कानूनी पैमानों पर ये फैसले कितने टिक पाते हैं। इनकी सल परीक्षा दालतों में ही होगी। सैद्धांतिक तौर पर ऐसे ल्पसंख्यकों को वीजा या नागरिकता देने में कुछ भी गलत नहीं है जो पने देश में उत्पीड़न ङोल रहे हैं जैसा कि भारत ने भी पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के लिए घोषणा की है। 1ट्रंप ने संकेत दिए हैं कि पाकिस्तानी और फगानी नागरिकों के वीजा आवेदनों की कड़ाई से जांच होगी। इससे पाकिस्तानियों के लिए मेरिकी वीजा हासिल करना खासा मुश्किल हो जाएगा। साथ ही मेरिका पाकिस्तान को प्रतिबंधित देशों की सूची में डालने का डर दिखाकर आतंक संबंधी खासतौर से फगानिस्तान से जुड़े मसलों पर उससे ज्यादा मदद हासिल कर पाएगा।

इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को सतत रूप से जारी रखना होगा और इसमें वैश्विक सहभागिता जरूरी होगी। मगर यह लड़ाई तार्किक रूप से लड़नी होगी, ताकि धिकांश मुस्लिमों को यह महसूस न हो कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। इससे केवल कड़वाहट बढ़ने के साथ ही कुछ देशों में मुस्लिम युवाओं को आतंकी समूहों से जुड़ने के लिए बरगलाया जा सकता है। ट्रंप के फैसले की परीक्षा होनी बाकी है कि यह इस्लामिक आतंकवाद से लड़ने में वास्तव में मददगार हुआ या नहीं। इसकी सफलता तय नहीं है। इस बीच मुस्लिम देशों को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि वे आतंकवाद रोकने के लिए उचित कदम उठाएंगे और पाकिस्तान जैसे देश पर दबाव बनाएंगे कि वह आतंकवाद को सरकारी नीति का हिस्सा बनाने से बाज आए।

(लेखक विवेक काटजू विदेश मंत्रलय में सचिव रहे हैं)